बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा खनन के लिए छतरपुर ज़िले के बक्सवाहा जंगल के एक बड़े हिस्से में लगे दो लाख से अधिक पेड़ काटे जाने की योजना है, जिसका व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा है. विडंबना यह है कि बीते दिनों पर्यावरण बचाने की कसमें खाने वाले सत्ता और विपक्ष के अधिकांश नेता इसे लेकर चुप्पी साधे हुए हैं.
छतरपुर जिले के बक्सवाहा जंगल संरक्षित वन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा काटने की तैयारी है क्योंकि डेढ़ दशक पुरानी एक पड़ताल के मुताबिक अनुमान है कि यहां लगभग 3.42 करोड़ कैरेट हीरा जमीन में दबा है. इसे देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार माना जा रहा है.
मध्य प्रदेश भूविज्ञान एवं खनन निदेशालय (डीजीएमएमपी) की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस हीरे का अनुमानित बाजार मूल्य करीब 55,000 करोड़ रुपये है. इस परियोजना को ‘बंदर डायमंड प्रोजेक्ट’ नाम मिला है. 2019 में राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस हीरा खदान की नीलामी की थी. जिसके तहत आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड (ईएमआईएल) को खनन के लिए जंगल की 382.131 हेक्टेयर वन भूमि 50 साल की लीज पर मिली है.
अभी परियोजना पर काम शुरू नहीं हुआ है क्योंकि कंपनी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति का इंतजार है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसका विरोध जरूर शुरू हो गया है.
विरोध इसलिए है क्योंकि इसके शुरू होने पर 382.131 हेक्टेयर जंगल काटा जाएगा. जिसकी बलि 46 प्रजातियों के 2,15,875 भरे-पूरे पेड़ चढ़ेंगे. इनमें सागौन, महुआ, बेल, तेंदूपत्ता, आंवला, बरगद, जामुन, अर्जुन, पीपल जैसे बहुपयोगी पेड़ शामिल हैं.
यह सरकारी आंकड़े हैं. स्थानीय लोगों का दावा है कि कटने वाले पेड़ों की संख्या करीब 4-5 लाख हो सकती है. मुद्दा यह भी है कि खनन कार्य में प्रतिदिन 1.60 करोड़ लीटर पानी प्रयोग होगा, जिसके लिए एक मौसमी नाले का पानी बांध बनाकर डायवर्ट किया जाएगा.
सामाजिक कार्यकर्ता हरिकेश द्विवेदी बताते हैं, ‘यहां पहले से ही भीषण जल संकट है. बक्सवाहा तहसील में हालात ऐसे हैं कि सर्दियों में टैंकर से पानी सप्लाई होता है. गांवों में लोग दो-दो किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं. यही नाला/नदी आठ-दस गांवों में सिंचाई का साधन है. वन्यजीव इस पर निर्भर हैं. यह आगे जाकर केन और बेतवा नदी में मिलता है. इन दोनों नदियों पर भी बांध से प्रतिकूल असर पड़ेगा.’
स्थानीय स्तर पर अभियान चला रहे संकल्प जैन बताते हैं, ‘परियोजना के मुताबिक 1,135 फीट की खुदाई करने पर किम्बरलाइट अयस्क मिलेगा. इतनी गहरी खुदाई भूजल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी. भारत सरकार के केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के मुताबिक (सीजीडब्ल्यूए) बक्सवाहा तहसील सेमी क्रिटिकल श्रेणी में है. फिर भी करोड़ों लीटर पानी की बर्बादी की तैयारी है.’
अजय दुबे कहते हैं, ‘सरकार की निगरानी और उसके फैसलों पर सवाल उठाना विपक्ष का काम है. बक्सवाहा के लिए देशभर से आवाजें उठ रही हैं लेकिन मध्य प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ या राज्य व केंद्र के किसी भी कांग्रेसी नेता ने इस पर जुबां नहीं खोली है. जो भाजपा संगठन पर्यावरण और संस्कृति से जुड़ाव की बात करता है, वह भी चुप है.’