प्रकृति एवं संस्कृति के संरक्षण के के लिए भगवान महावीर समेत अनेक महापुरुषों ने समाज का मार्गदर्शन किया। साथ ही यह संदेश दिया कि पृथ्वी, जल, ऊर्जा, वायु, वनस्पति इत्यादि प्रकृति के तत्व का अनावश्यक उपयोग न करें, क्योंकि पदार्थ सीमित मात्रा में है। मनुष्य की असीम इच्छाओं की पूर्ति सीमित पदार्थ नहीं कर सकते। इसलिए जीवन में संयम को अपनाना चाहिए। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने कहीं। वे प्रकृति एवं सस्कृति के संरक्षण विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रही थी। यह आयोजन जैन संघ के आचार्य डॉ. लोकेश मुनि के षष्ठी पूर्ति के अवसर पर अखिल भारतीय जैन समाज द्वारा आयोजित किया गया। राज्यपाल ने डॉ. लोकेशजी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं भी दी।
राज्यपाल ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि जैन समाज का उनका पुराना संबंध रहा है। कॉलेज के दिनों में जैन समाज के परिवार की लड़कियां उनकी मित्र थी। वे उनके संपर्क में आने के बाद जैन समाज को करीब से जाना और साथ ही कई जैन मुनियों के सानिध्य में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। जैन धर्म सत्य, अहिंसा और सद्भाव की सीख देता है। यह सीख जैन संतो और उनके अनुयायियों के परिलक्षित होते है।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृति के संरक्षण के लिए जैन मुनियों ने अनेकांत दर्शन का प्रतिपादन किया। साथ ही उन्होने प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए षटजीवनिकाय का मौलिक सिद्धान्त प्रतिपादन किया।
राज्यपाल ने लोकेशमुनि की सराहना करते हुए कहा कि वे प्रकृति एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन विषय पर जनजागृति के लिए अलख जगाई। उनके नेतृत्व में अहिंसा विश्व भारती संस्था द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ, नशे के खिलाफ जो अभियान चलाया जा रहा है, उसकी जितनी सराहना की जाये वो कम है। इन्ही प्रयासों के लिए आचार्य लोकेश जी को भारत सरकार ने राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरुस्कार से सम्मानित किया। राज्यपाल ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि वे इसी तरह राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के लिए मानवीय मूल्यों के उत्थान के लिए तथा विश्व में अहिंसा, शांति व सद्भावना के संवर्धन के लिए कार्य करते रहेंगे। कार्यक्रम को आचार्य डॉ. लोकेश मुनि, केंद्रीय मंत्री श्री प्रल्हाद जोशी एवं केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री श्री कैलाश चौधरी ने संबोधित किया।