सुमन केसरी द्वारा लिखित गांधारी नाटक का यह पहला मंचन है और इस नाटक का निर्देशन ग्वालियर के प्रतिभाशाली युवा नबील सिंह गैरी ने किया है। इस नाटक का यह पहला मंचन है, निर्देशक के लिए चुनौती और मुश्किल हो जाती है जब मंचन का पहले का कोई सन्दर्भ ना हो I
अभिनय , निर्देशन और प्रभाव में नाटक दर्शकों की कसौटी पर एकदम खरा उतरा I शहर के साहित्य, संस्कृति और रंगकर्म से जुड़े दर्शकों के समक्ष नाटक गांधारी को संगीत और प्रकाश परिकल्पना ने ऊचाईयां दी और कलाकारों ने नबील सिंह के कुशल निर्देशन में नाटक का सफल और यादगार मंचन किया जिसे दर्शकों ने टिकट लेकर देखा और सराहा I लेखिका सुमन केशरी नाटक की लेखिका सुमन केशरी भारत सरकार के प्रशासन संबंधित कार्य करते हुए लेखन से भी जुड़ी रही। कथानटी के रूप में साहित्य में जानी जाने वाली सुमन केसरी के 5 कविता संग्रह हैं। गांधारी नाटक उनके महाभारत के गहरे अध्ययन से ही उपजा नाटक है। नाट्य मंचन के समय नाटक की लेखिका सुमन केशरी भी उपस्थित रहीं और अपने लिखे नाटक का मंचन देखा I
मंच पर : गांधारी नाटक में दर्जनभर से अधिक होनहार कलाकारों ने महाभारत काल की कथा गांधारी का नाट्य मंचन किया। नाटक की परिकल्पना निर्देशन एवं संगीत नबीलसिंह गैरी का और प्रकाश संचालन संजय अरोरा का रहा।
नाटक में गांधारी का रोल कनिष्का गुर्जर ने निभाया, गांधार नरेश राघवेंद्र भदोरिया बने तो सुधर्मा और सत्यवती का दोहरा किरदार नीलम दोहरे ने निभाया। फिल्म जगत में अपनी दमदार उपस्थिति से ग्वालियर का नाम रोशन करने वाले आदेश भारद्वाज इस नाटक में शकुनि की भूमिका में अभिनय करते नजर आए ।
गौरव संतवानी धृतराष्ट्र बने और कनिका श्रीवास्तव ने द्रोपदी का रोल निभाया। इसके अतिरिक्त युयुत्सु मोलेश सेंगर , विनीत कुमार दिव्यांश अनुरागी, कामिनी अंशु राठौर , गायक रोहन शिंदे और दुशासन आकाश तिवारी बने। भीष्म पितामह का रोल अभिषेक सिंह ने और कृष्ण का किरदार अनिकेत मिथिलेश गुप्ता ने निभाया I
कथावस्तु गांधारी नाटक हस्तिनापुर के प्रज्ञा चक्षु राजकुमार धृतराष्ट्र की पत्नी , दुर्योधन- दुशासन आदि सौ पुत्रों की मां की कहानी है। गांधारी वह स्त्री है जिसने अपने अंधे पति का अनुसरण अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर किया।
सब इसे गांधारी की पतिव्रता होने का प्रमाण बताते हैं पर बात क्या इतनी भर है। यहां भी शकुनि चाल चलता है, भीष्म चुप रहते हैं और द्रोपदी के चीर हरण से लेकर महाभारत युद्ध तक और युद्ध उपरांत गांधारी-कृष्ण संवाद तथा गांधारी-द्रोपदी संवाद के साथ गांधारी और भीष्म के संवाद तक की कथा को यह नाटक बखूबी मंचित करता है।
यह नाटक कई नूतन प्रसंग जो लेखिका ने कल्पित किए हैं उन्हें भी दर्शकों को दिखाता है जैसे गांधारी का बचपन, धृतराष्ट्र संग में परिणय प्रसंग, गांधारी-भीष्म संवाद , गांधारी का ममतामयी कोमल भाव और इसी तरह गांधारी के विवेकशील मन के अनेक भाव नाटक सामने रखता है।
नाटक गांधारी अनेक जिज्ञासा और सवाल भी खड़े करता है जिनका बखूबी मंचन समाधान भी देता है।