- साझा संसार नीदरलैंड्स की पहल पर “छत्तीसगढ़ी मातृभाषा का भविष्य” पर अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन आयोजन, श्रीमती सरला शर्मा की अध्यक्षता में व श्री मीर अली मीर की विशिष्ट उपस्थिति में, सम्पन्न सम्पन्न हुआ।
- इस आयोजन में छतीसगढ़ प्रान्त से श्री अशोक तिवारी (सेवानिवृत मानव विज्ञानी), श्री संजीव तिवारी (अधिवक्ता एवं साहित्यकार तथा नेहा राठौर (कंटेंट राइटर) ने भाग लिया।
- इस कार्यक्रम का संयोजन साझा संसार के मुखिया श्री रामा तक्षक (नीदरलैंड्स) के सान्निध्य में हुआ और इसका सफल सञ्चालन मनीष पाण्डेय (नीदरलैंड्स) ने किया।
संयोजक श्री रामा तक्षक ने अपने स्वागत वक्तव्य में बताया कि मातृभाषा संस्कृति की जननी है। मातृभाषा और संस्कृति आपसी सम्बन्ध अटूट है। मातृभाषा, देह और अस्तित्व का जोड़ है। उन्होंने छतीसगढ़ी मातृभाषा के विषय में अपनी जिज्ञासा के साथ कार्यक्रम के सभी वक्ताओं का स्वागत किया।अपने अध्यक्षीय संदेश में श्रीमती सरला शर्मा ने बताया कि पृथक राज्य बनने के पहले छत्तीसगढ़ी साहित्य की रचना प्रक्रिया धीमी थी। लेकिन सन 2000 में, नए राज्य के गठन के बाद, इसमें तेजी आयी है। स्कूलों में छत्तीसगढ़ी पढ़ाई जाने लगी है। यद्यपि सम्पूर्ण पाठ्यक्रम छत्तीसगढ़ी में अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। इस दिशा में प्रयास जारी है।
छत्तीसगढ़ी के लोक कवि श्री मीर अली मीर ने कहा कि अब छत्तीसगढ़िया लोग अपनी मातृभाषा के लिए सजग हो गए हैं। हम जैसे जैसे अपने जीवन के हर पहलू और आचरण में भाषा को अपनांयेंगे तो भाषा को पूरा मान मिलेगा। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि अब शहरों में छत्तीसगढ़ी भाषा का व्याहारिक उपयोग होने लगा है जिसमें व्यापारी और सम्पन्न वर्ग अपने कामगारों और ग्राहकों से छत्तीसगढ़ी में संवाद करने का प्रयास करते हैं।
मानव वैज्ञानिक श्री अशोक तिवारी ने प्रवासी छत्तीसगढ़ियों पर अपने शोध के निष्कर्ष में बताया कि जो लोग प्रान्त से बाहर चले गए हैं। इन प्रवासी पीढ़यों ने अपनी मातृभाषा को जस का तस संजोए रखा है। लेकिन जो राज्य में रहते हैं उन्हें भी उसके उत्थान में बहुत काम करना है। जब तक हम अपने व्यवहार में छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को पूरी तरह से नहीं लाएंगे तब तक इसके संरक्षण की चुनौती बनी रहेगी।
पहली छतीसगढ़ी ऑनलाइन पत्रिका “गुरतुर गोठ” के संस्थापक और सम्पादक श्री संजीव तिवारी ने इस बात का उल्लेख किया कि छत्तीसगढ़ी 2 करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा और भारत की 11वीं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इस भाषा के एक हजार से वर्ष से भी पहले के काष्ठ लेख दांतेवाड़ा, बस्तर में मिले हैं। इसका स्थापित व्याकरण और न केवल कविता कहानी बल्कि उपन्यास आदि के लेखन छतीसगढ़ी में हो रहे हैं। लेकिन प्रशानिक रूप से इस पर अभी और काम करना बाकी है। नया राज्य बन जाने के लगभग दस वर्ष बाद छतीसगढ़ी को राज भाषा का दर्जा तो मिला लेकिन व्याहारिक रूप में अभी भी इसका स्थान दोयम दर्जे का ही है।
युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए सुश्री नेहा राठौर जी ने बताया कि गावों के लोग शहर आकर छत्तीसगढ़ी मातृभाषा में बोलने से शर्माते हैं। जबकि सोसियल मीडिया पर छत्तीसगढ़ी मातृभाषा के गीतों की पंक्तियां बहुत सुर्खियां बटोरती हैं। कस्बों में तो छत्तीसगढ़ी भाषा का पूरा उपयोग होता है लेकिन शहरों में अभी भी इसके प्रति थोड़ी हीन भावना बनी हुई है।
उन्होंने बताया कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में छतीसगढ़ी कंटेंट के उपयोग करने वाली में बढ़ोत्तरी हो रही है और यदि हम अच्छा कॉन्टेंट उपलब्ध कराते हैं तो लोग बढ़कर उनका उपयोग करते हैं। सार रूप में यही कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में स्थान मिले।साथ ही छत्तीसगढ़ी मातृभाषा का प्रयोग अपने जीवन के हर स्तर पर अधिक से अधिक हो। सभी वक्ताओं का मत है कि राज्य सरकार को भी छतीसगढ़ी भाषा को प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ प्रशासनिक काम में, पूरी निष्ठा से लागू करने पर ही छत्तीसगढ़ी मातृभाषा जीवित रह पायेगी।