इंदौर. कमलनाथ सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को हर महीने 5 से 10 पुरुषों के नसंबदी ऑपरेशन कराने का आदेश विवाद बढ़ने के बाद शुक्रवार को वापस ले लिया है। स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट ने यह जानकारी दी। वहीं, राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राज्य निदेशक छवि भारद्वाज को पद से हटा दिया है। दरअसल, भारद्वाज ने अपने आदेश में कहा था कि कर्मचारियों को टारगेट पूरा नहीं करने पर नो-वर्क, नो-पे के आधार पर वेतन नहीं दिया जाएगा। इतना ही नहीं कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस सरकार के इस आदेश की तुलना इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के नसबंदी अभियान से की थी।
परिवार नियोजन के अभियान के तहत हर साल प्रदेश के जिलों को कुल आबादी के 0.6% नसबंदी ऑपरेशन का टारगेट दिया जाता है। इंदौर में यह टारगेट 22 हजार ऑपरेशन का है। कुछ जिले इसे हासिल कर भी लेते हैं, लेकिन इनमें पुरुषों की सहभागिता बहुत कम है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्धाज ने इस पर नाराजगी जताते हुए सभी कलेक्टर और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को पत्र लिखा।
प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहां का टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) तीन से अधिक है, जबकि मप्र में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। टीएफआर का मतलब है कि एक महिला जीवनकाल में कितने बच्चों को जन्म देती है। कुछ जिलों में टारगेट भी हासिल नहीं हो पाते हैं, जिससे पूरे प्रदेश के आंकड़े बिगड़ते हैं। लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. ललित मोहन पंत के मुताबिक, पुरुष नसबंदी तुलनात्मक रूप से आसान है। इसमें एनेस्थीसिया देने की जरूरत नहीं होती है। जोखिम भी कम होते हैं। कई बार महिलाएं पति के न करवाने पर मजबूरी में ये ऑपरेशन करवाती हैं।