देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकार से कहा कि ऐसे प्राइवेट अस्पतालों की पहचान करें, जहां कोरोना के मरीजों को फ्री या मामूली खर्चे पर इलाज मिल सके। कोर्ट ने कहा कि जिन अस्पतालों को फ्री में या फिर बहुत कम रेट पर जमीन मिली है उन्हें कोरोना के मरीजों का इलाज भी फ्री करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से रियायत हासिल करने वाले दिल्ली के सभी निजी अस्पतालों से कहा कि वे गरीबों के मुफ्त इलाज का वादा पूरा करें या अपने लाइसेंस कैंसल किए जाने के लिए तैयार रहें। इससे पहले एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अस्पतालों के खिलाफ फैसला दिया था।
याचिकाकर्ता ने कहा- कई प्राइवेट अस्पताल आर्थिक शोषण कर रहे
प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना ट्रीटमेंट के खर्च पर लगाम लगाने की मांग की याचिका एडवोकेट सचिन जैन ने लगाई थी। उनका आरोप है कि कई निजी अस्पताल संकट के समय में भी कोरोना के मरीजों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं। जैन का कहना है कि जो प्राइवेट अस्पताल सरकारी जमीन पर बने हैं या चैरिटेबल संस्थान की कैटेगरी में आते हैं, सरकार को उनसे कहना चाहिए कि कम से कम कोरोना के मरीजों का तो जनहित में फ्री या फिर बिना मुनाफा कमाए इलाज करें। लीज अग्रीमेंट के मुताबिक, इन अस्पतालों को गरीब वर्ग के मरीजों का मुफ्त में इलाज करना था। ओपीडी पेशेंट के मामले में 25 पर्सेंट और इन-पेशेंट्स के लिए इसकी सीमा 10 पर्सेंट तय की गई थी। हालांकि, मूलचंद, सेंट स्टीफंस और सीताराम भरतिया जैसे निजी अस्पतालों ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
वही मनोज तिवारी ने आरोप लगाया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को कह रहे हैं, जबकि प्राइवेट अस्पताल लोगों से कोरोना इलाज के नाम पर 5 से 10 लाख तक वसूल रही हैं। उन्होंने कहा कि पहले मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली में कोरोना से हो रही मौत को छिपा रहे थे, अब इलाज के बारे में गलत आंकड़े पेश कर रहे हैं।