बात एक ऐसे शख्सियत की है जिन्होंने हार कर भी लोगों की तन से,मन से,धन से बेश्विक महामारी के दौर में हर संभब मदद की! मै बात कर रहा हूँ दिग्विजय सिंह जी की। जिन्होंने एक ऐसे राजनेता की छबि आम जनता के सामने प्रस्तुत की, जिसकी कल्पना नही की जा सकती थी। आज आमजन इस बात का रोना रोते है कि साहब हमें हमारे जनप्रतिनिधि के दर्शन नही हो रहे जिसे हमने चुना ह। दिग्गी राजा हार कर भी पीड़ित शोषित,दींन,दुःखियों की सेवा में लगे है! देश में आज एक ऐसे राजनेता के रूप में जनता के बीच है जब अन्य राजनेता या तो घर की चारदीवारों में बंद है घर की देहली पार करने से घबरा रहे है तब एक योद्धा के रूप में एक फरिस्ता आमजन के बीच है! सच में विजय तो हर कोई हो सकता है पर दिग्विजय होने के लिये एक दयालु हिर्दय,सम्बेदना से भरा मन,मदद की भावना,गिरते को उठाने के लिये हाथ,पीड़ितों के दुःख में आँसू से भरे नयन,जहाँ से भी उठी सहयोग या मदद की आबाज बो ही सुनने के लिये तैयार है कान,दौड़ते कदम हर पल यही तो है दुर्लभ गुणों से शुमार तभी तो हर कोई लगा रहा है दिग्गी को पुकार।

संदीप नंदन जैन (लेखक)

ये लेख के अपने विचार है।