मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का 12 वर्षो का कार्यकाल भले ही स्वर्णिम मध्य प्रदेश वाला रहा हो परन्तु वर्तमान में शिवराज सिंह का मंत्रिमंडल आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश की राह पर चल पड़ा है। मंत्रियों की उलाहना और मतभेद अब जनता के सामने आने लगे है। कई बार तो कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच असहमति के सुर सार्वजनिक होते हुए दिखे है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री का मंत्रियों को डिनर देना साथ ही जिले के प्रभार में सिंधिया के मंत्रियों का भरपूर ख्याल रखना कई भाजपा संगठन के पदाधिकारियों को रास नहीं आया वहीँ यशोधरा राजे का प्रधुमन सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर प्रतिक्रिया और फिर ट्वीट कर खबर का खंडन निश्चित ही असहमति की ओर संकेत करता है। मध्य प्रदेश ने कोरोना काल में भले ही आंकड़ों की उपलब्धि नंबर वन वाली बना ली हो परन्तु हकीकत अभी भी ऑक्सीजन प्लांट का न लग पाना साथ ही तीसरी लहर से निपटने की तैयारी अभी धरातल का रूप नहीं ले पायी है। लगातार पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम ओर माध्यम वर्ग की नाराजगी इस बार सरकार को महँगी पड़ सकती है। मध्य प्रदेश में इस समय बेरोजगारी चरम पर है , आर्थिक स्थिति दयनीय है। सरकार की मुख्य आय का स्त्रोत पेट्रोल – डीजल ओर शराब की टैक्स कमाई ही जरिया बना हुआ है। अधिकारी आम जन के कार्य नहीं कर रहे है। मध्य प्रदेश में इस समय बुरा हाल बना हुआ है। मस्त मंत्री ओर अधिकारी प्राण बचाने की कहकर बेडा गर्त किये हुए है। मध्य प्रदेश के जिम्मेदार अफसरों ओर मुखिया को चाहिए की पडोसी राज्यों से कुछ सीखे ओर जाणत्या के सेवक कार्य के रूप में प्रदर्शित करे न कि सिर्फ कहकर.