जबलपुर ( रफीकखान)/ भोपाल: आज बुधवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति श्री संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने कुछ निजी विश्वविद्यालयों के द्वारा दाखिल रिट याचिका में अंतरिम राहत प्रदान करते हुए आदेशित किया कि सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत उनको RTI एक्टिविस्ट द्वारा मांगी जा रही जानकारी देने हेतु बाध्य न किया जाए। यह रिट याचिका निजी विश्वविद्यालयों द्वारा हाल ही में पारित प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी, जिसमें यह आधार लिया गया था की निजी विश्वविद्यालय, जो की केंद्र अथवा राज्य सरकार से किसी भी तरह का वित्तीय अथवा शासकीय अनुदान प्राप्त नहीं करते है अथवा किसी भी तरह की सहायता नहीं लेते है, उनको सूचना के अधिकार में लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करने हेतु बाध्य करना एवं किसी भी व्यक्ति द्वारा दाखिल आवेदन को स्वीकार कर सूचना प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। पूर्व में राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त द्वारा आदेश पारित कर के यह कहा था कि प्रदेश भर के निजी विश्वविद्यालय ना ही केवल लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करे, अपितु सूचना के अधिकार में मांगी जाने वाली सभी जानकारियों को सार्वजनिक करने हेतु बाध्य है। इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई, जिस पर आज सुनवाई हुई। निजी विश्वविद्यालयों की ओर से अधिवक्ता श्री सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता एवं आशीष मिश्रा ने पैरवी की एवं राज्य सूचना आयोग की ओर से अधिवक्ता श्री जय शुक्ला ने पैरवी की। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के धारा 2 के अंतर्गत हर *‘पब्लिक अथॉरिटी’* को लोक सूचना अधिकारी अपने यहां नियुक्त करना होता है, जो अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लगने वाले सभी आवेदनों का परीक्षण कर उसमे सूचना को सार्वजनिक करता है। प्रदेश के निजी विश्वविद्यालय द्वारा अधिनियम के अंतर्गत स्वयं को ‘पब्लिक अथॉरिटी’ ना मानते हुए लोक सूचना अधिकारी नहीं नियुक्त किया गया, ना ही उनके द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम में लगने वाले आवेदन जो किसी भी आम व्यक्ति द्वारा दाखिल किया जा रहा था, उनको जानकारी प्रदान की गई। इसके विरुद्ध राज्य सूचना आयोग में आवेदन दाखिल हुए, जिस पर राज्य सूचना आयोग ने पूर्व में फरवरी 2022 में आवेशित किया की सभी निजी विश्वविद्यालय लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करे एवं तत्पश्चात 8 जून 2022 के आदेश के द्वारा यह आदेशित किया की जिन व्यक्तियों ने सूचना के अधिकार अधिनियम में आवेदन दाखिल किये है, उन सबको स्वीकार करते हुए जो भी जानकारी उनके द्वारा चाही गई है वो आवेदक एवं पक्षकार व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाए। राज्य सूचना आयोग के इन आदेशों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करते हुए निजी विश्वविद्यालयों द्वारा कहा गया कि यह आदेश असंवैधानिक एवं अनुचित है एवं सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की परिधि के बाहर पड़ता है। निजी विश्वविद्यालयों की तरफ से अधिवक्ता श्री सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने तर्क दिया की धारा 2 (एच) में पब्लिक अथॉरिटी घोषित होने के लिए यह आवश्यक है कि वह किसी भी तरह से राज्य अथवा केंद्र शासन से सहायता, अनुदान या शासकीय लाभ प्राप्त कर रहे हो। चूँकि निजी विश्वविद्यालयों द्वारा ऐसा किसी भी तरह का लाभ, अनुदान अथवा शासकीय कोष से सहायता नहीं ली जाती है, ऐसी परिस्थिति में अतएव उनको अधिनियम के अंतर्गत ‘पब्लिक अथॉरिटी’ नहीं माना जा सकता एवं आदेश को निरस्त करने की मांग की गई।

उच्च न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता निजी विश्वविद्यालय द्वारा दाखिल याचिका में अंतरिम राहत प्रदान करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता निजी विश्वविद्यालय को किसी भी तरह की सूचना उपलब्ध कराने हेतु बाध्य न किया जाए एवं राज्य आयोग एवं अन्य कई आर० टी० आई० आवेदकगण जिनके द्वारा आवेदन दाखिल किया गया था उनको नोटिस जारी करते हुए अगस्त 2022 के तीसरे सप्ताह तक जवाब माँगा है।