अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के देशिक-अभिलेख-अनुसंधान केंद्र के माध्यम से प्राचीन भारतीय ज्ञान को अगली पीढ़ी के लिए सहेजते हुए वैज्ञानिक तरीके से उन्हें ये ज्ञान सौंपने का काम भी कर रही है I
हमारा प्राचीन ज्ञान बेहद शानदार और समृद्ध लेकिन उसे अपडेट नहीं किया गया उसका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया गया, हमेशा इस ज्ञान को जानने के बजाय उसे मानने पर जोर दिया गया, यह शिक्षा के क्षेत्र में हुई सबसे बड़ी गलती- मनीष सिसोदिया : चिंतन के नाम पर देश की राजनीति कन्नी काटती नजर आती है यह देश का दुर्भाग्य, यही कारण है कि देश में शिक्षा पर काम नहीं हो पाया, यदि देश और समाज को खड़ा करना है उसकी नीँव मजबूत करनी है तो इसका एकमात्र रास्ता शिक्षा है- मनीष सिसोदिया*हमारा प्राचीन ज्ञान मौलिक व महान लेकिन अंग्रेजों तथा आजादी के बाद भी इस ज्ञान परम्परा की उपेक्षा हुई, यह ज्ञान परम्परा राजनीति का शिकार भी हुई , राजनीति को साधने के लिए इसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया- मनीष सिसोदिया29 अगस्त, नई दिल्लीकेजरीवाल सरकार जहाँ एक तरफ दिल्ली को आधुनिक और सुंदर बनाने का काम कर रही है| लोगों को शानदार शिक्षा-स्वास्थ्य देने का काम कर रही है, अपने फ्री बिजली पानी, महिलाओं को फ्री बस ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं देकर उन्हें महंगाई से लड़ने में लोगों की मदद कर रही है| वहीं प्राचीन भारतीय ज्ञान को अगली पीढ़ी के लिए सहेजते हुए वैज्ञानिक तरीके से उन्हें ये ज्ञान सौंपने का काम भी कर रही है|
इस क्रम में केजरीवाल सरकार ने अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर ‘देशिक व्याख्यान’ श्रृंखला की शुरुआत की, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सोमवार को सी.डी.देशमुख ऑडिटोरियम, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस व्याखानमाला का उद्घाटन किया| व्याखानमाला के पहले व्याख्यान में आज आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने प्राचीन भारत के ज्ञान विशेषकर अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी की भारतीय ज्ञान-परम्पराओं को लेकर अपना वक्तव्य दिया|
इस व्याख्यानमाला के माध्यम से केजरीवाल सरकार का उद्देश्य अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी के दौर में हुए अनुसंधानों, वैज्ञानिक प्रयोगों, सामाजिक चेतना के प्रयोगों, शिक्षा में हुए प्रयोगों की ख़ास बातों और उसमें भारत के भविष्य के लिए क्या संभावनाएं थी आदि को लेकर छात्रों को जागृत करना है| व्याख्यानमाला के पहले वक्तव्य में इसी बात कि चर्चा हुई कि हमारा यह प्राचीन ज्ञान कितना मौलिक व महान है लेकिन कैसे अंग्रेजों तथा आजादी क बाद भी इस ज्ञान परम्परा की उपेक्षा की गई|
इस ज्ञान परम्परा की न केवल उपेक्षा की गई बल्कि हमारी यह ज्ञान परम्परा राजनीति का शिकार भी होती चली गई तथा नेताओं अपनी राजनीति को साधने के लिए इसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया| इस मौके पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम के माध्यम से हमारा विज़न इस प्राचीन ज्ञान को केवल और केवल बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित नहीं रखना है बल्कि हर छात्र तक पहुँचाना है ताकि यह ज्ञान उनके माध्यम से समाज तक पहुंचे और लोग इस प्राचीन व संमृद्ध ज्ञान का उपयोग कर सके|
श्री सिसोदिया ने कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि चिंतन करने के नाम पर देश की राजनीति कन्नी काटती नजर आती है और यही कारण है कि देश में शिक्षा पर काम नहीं हो पाया| पर यदि देश और समाज को खड़ा करना हा उनकी नीँव को मजबूत करना है तो इसका एकमात्र मार्ग शिक्षा है| उन्होंने कहा कि कोई भी समाज या देश अपने धरातल पर किस मजबूती से खड़ा होगा यह स्कूल तय करते है और उसके बाद देश किस ऊंचाई तक जाएगा यह उसकी यूनिवर्सिटीज तय करती है|
उन्होंने कहा कि यदि समाज का बेस कमजोर है और समाज किसी भी मुद्दे पर भटक जाता है तो इसका मतलब है कि स्कूल कमजोर है और देश-समाज चिंतन-सोच में जिस ऊंचाई पर है वो यूनिवर्सिटीज तय करती है|
उपमुख्यमंत्री ने आगे कहा कि हमारा प्राचीन ज्ञान बेहद शानदार और समृद्ध था लेकिन उसे अपडेट नहीं किया गया और आगे नहीं बढ़ाया गया उसका वैज्ञानिक विश्लेषण नहीं किया गया| आने वाली पीढ़ियों को इस प्राचीन ज्ञान को जानने के बजाय उसे मानने पर जोर दिया गया और यह शिक्षा के क्षेत्र में हुई सबसे बड़ी गलती थी| उन्होंने कहा कि इस गलती को ठीक करने कि दिशा में ऐसे कार्यक्रम बेहद महत्वपूर्ण है जहाँ प्राचीन अनुसंधाओं, प्रयोगों व ज्ञान को साझा करने के लिए मंच प्रदान किया जाता है|
उन्होंने कहा कि ये बेहद महत्वपूर्ण है कि यह केवल बुद्धिजीवी वर्ग के चर्चा का हिस्सा बनकर न रह जाए बल्कि इसकी असली सफलता तब होगी जब यह जनमानस के चर्चा का विषय बनेगा|बता दे कि केजरीवाल सरकार की अम्बेडकर यूनिवर्सिटी द्वारा देशिक-अभिलेख-अनुसंधान केंद्र की शुरुआत की गई है| इस केंद्र के तहत यूनिवर्सिटी प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्पराओं, प्रयोगों व अनुसंधानों को दोबारा खोजने, उनपर अपने इनसाइट देते हुए उनका डॉक्यूमेंटेशन करने का काम करेगी तथा इस प्रकार प्रस्तुत करेगी कि एक आम व्यक्ति भी उन्हें समझ सकें और वर्तमान परिदृश्य में अपना सकें|