दीपोत्सव का पर्व सबसे खास और महत्वपूर्ण माना गया है। इसकी तैयारी में कुम्हारों के चाक ने रफ्तार पकड़ ली है। मिट्टी के दीए, मां लक्ष्मी की मूर्ति व ग्वालिन तैयार करने का कार्य परिवार के साथ बना रहे हैं। त्योहार के नजदीक होने के कारण पूरे दिन दीए बनाने का कार्य किया जा रहा है। पारंपरिक मिट्टी के दीपों से दीपावली में घरों में रोशनी की जाएगी।

तालापारा, कुम्हारपारा, चांटीडीह, चिंगराजपारा, मोपका, उस्लापुर, मंगला जैसे क्षेत्रों में मिट्टी के दीए बनाने के कार्य में कुम्हार जुटे हैं। इस कार्य को बड़ी मेहनत करते हुए कर रहे हैं। कुम्हार कृष्णा प्रजापति ने बताया कि उसका पूरा परिवार इस कार्य को करता है। दशहरा पर्व के बाद से ही दीपोत्सव के लिए मिट्टी के दीए बनाने का कार्य शुरू किया है। दीप बनाने का कोई समय निर्धारित नहीं है। कभी पूरे दिन दीए बना रहे हैं तो कभी रात में भी इस कार्य को पूरा करने में जुटे रहते हैं। इस बार मिट्टी के साथ ही पैरा व लकड़ी के दाम बढ़े हैं।

० मेहनत के बाद भी मिलता है कम दाम

कुम्हारों ने बताया कि मिट्टी के पारंपरिक दीए हो या मिट्टी की कोई भी कलाकृति बनाना हो। बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। पूरा परिवार इस कार्य में लगा रहता है लेकिन जितनी मेहनत की जाती है उसके मुताबिक मेहनताना नहीं मिलता है। लोग फैंसी दीए को ज्यादा महत्व देते हंै जिसके कारण पारंपरिक मिट्टी के दीए का उचित मूल्य नहीं मिलता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *