नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/जनजाति का उत्पीड़न रोकने से जुड़े कानून (एससी/एसटी एक्ट) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। शीर्ष अदालत ने इसी के साथ साफ कर दिया है कि अगर मामला पहली नजर में एससी/एसटी एक्ट के तहत नहीं पाया गया तो आरोपी को अग्रिम जमानत मिल सकती है। एफआईआर रद्द भी हाे सकती है। हालांकि, एफआईआर दर्ज करने से पहले शुरुआती जांच और किसी आला पुलिस अफसर की मंजूरी जरूरी नहीं होगी।
दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज होने पर तत्काल गिरफ्तार पर रोक लगाई थी। साथ ही आरोपियों को अग्रिम जमानत देने का प्रावधान किया था। इसके बाद सरकार ने कानून में बदलावों को दोबारा लागू करने के लिए संशोधन बिल पास कराया था। जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने सोमवार को इस मामले में 2-1 से फैसला दिया, यानी दो जज फैसले के पक्ष में थे और एक ने इससे अलग राय रखी।
राहुल गांधी ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि भाजपा और आरएसएस दोनों की विचारधारा आरक्षण के खिलाफ है। आरएसएस के डीएनए को चुभता है आरक्षण, आरक्षण को हम कभी मिटने नहीं देंगे
देश में 17 फीसदी दलित वोट
एससी-एसटी कानून का मुद्दा इसलिए भी गरमाया था, क्योंकि देश में 17% दलित वोट हैं। इनका 150 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर असर है। अप्रैल 2018 में जिन 12 राज्यों में हिंसा हुई, वहां उस समय एससी/एसटी वर्ग से 80 लोकसभा सदस्य थे।