रायपुर – अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने आज निमोरा स्थित ठाकुर प्यारेलाल प्रशिक्षण संस्थान में वन अधिकार मान्यता अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु आयोजित तीन दिवसीय राज्य स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ किया। उन्होंने अधिनियम के सफल क्रियान्वयन के लिए वन विभाग और राजस्व विभाग को मिलकर कार्य करने पर बल देते हुए सामुदायिक वन अधिकार प्रत्येक के संबंध में भी प्राथमिकता से कार्य करने पर बल दिया। डाॅ. टेकाम ने प्रशिक्षण में उपस्थित जिलों के अधिकारियों से कहा कि राज्य में सामुदायिक भवन संसाधन अधिकार और सामुदायिक अधिकार विशेष रूप से मान्य किए जाने शेष हैं। व्यक्तिगत वन अधिकार भी नियम अनुसार मान्य किए गए हैं। प्रशिक्षण में उपस्थित अधिकारियों के पास मौका है कि वे वन अधिकार अधिनियम और नियम के प्रावधानों की प्रक्रिया के अनुसार आदिवासी और अन्य परम्परागत वनवासियों के अधिकार को मान्यता देने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

कार्यशाला में सचिव अनुसूचित जाति एवं जनजाति श्री डी.डी. सिंह सहित रायपुर, बेमेतरा और दुर्ग को छोड़कर शेष जिलों के सहायक आयुक्त आदिवासी विकास, वन विभाग के उप वनमण्डाधिकारी, रेंजर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण देने के लिए वन अधिकार मान्यता अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के क्रियान्वयन के जुड़े विशेषज्ञ और विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।

डाॅ. टेकाम ने कहा कि सरकार ने वन अधिकार अधिनियम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस अधिनियम के अंतर्गत ऐसे आदिवासी और अन्य परम्परागत वन निवासी, जिनका वन भूमि पर 13 दिसम्बर 2015 से पहले का कब्जा हो, उन्हें लाभान्वित किया जाना है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कार्यभार संभालते हुए 23 जनवरी 2019 को बैठक लेकर वन अधिकार पट्टे को प्राथमिकता की श्रेणी में लेकर कार्य करने पर जोर दिया था, साथ ही ज्यादा से ज्यादा से पात्र लोंगो को इसका लाभ मिल सके। यहीं कारण है कि नवम्बर 2019 तक 4 लाख 8 हजार 884 व्यक्तिगत वन अधिकार पट्टे और 27 हजार 240 सामुदायिक वन अधिकार पट्टे वितरित किए जा चुके है। अभी आगे सर्वे का काम चल रहा है और अन्य पात्र लोग भी इससे लाभान्वित होंगे।

डाॅ. टेकाम ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ में निवासरत विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह अबूझमाड़िया को पर्यावास अधिकार की मान्यता प्रदान करने की दिशा में प्रयास प्रारंभ किए गए है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत वन अधिकारों के साथ ही सरकार सामुदायिक वन अधिकारों को स्थानीय वन निवासियों प्रदान करने पर जोर दे रहीं है, ताकि अधिनियम की मंशा के अनुसार स्थानीय समुदाय द्वारा अपने वन संसाधनों का दीर्घकालिक उपभोग हेतु सुरक्षा की जा सके और अपनी आजीविका का संवर्धन किया जा सके। इस दिशा में धमतरी जिले के नगरी विकासखण्ड के ग्राम जबर्रा में 5 हजार 352 हेक्टेयर क्षेत्र में सामुदायिक वन संसाधन का अधिकार प्रदान किया गया है।

डाॅ. टेकाम ने कहा कि वन क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिवासी और गैर आदिवासी जंगल को नुकसान नहीं पहुंचाते बल्कि उसका बेहतर प्रबंधन करते हैं। उनको जंगल से लगाव है और अपनी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए जंगलों पर निर्भर होते हैं। उन्होंने कहा कि वनों के प्रबंधन का अर्थ केवल वनों का दोहन करना नहीं बल्कि वनों को बढ़ावा देने से भी है। डाॅ. टेकाम ने उम्मीद जाहिर की कि प्रशिक्षण में जिलों से आए मास्टर ट्रेनर्स वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाईयों का समाधान प्राप्त कर सकेंगे।

आदिम जाति विभाग के सचिव श्री डी.डी. सिंह ने कहा कि वन अधिकार को कानूनी अधिकार देने से आदिवासियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों का जीवन स्तर ऊपर उठाने में मदद मिलेगी। कार्यशाला को श्री एस. एल. कुजांम ओएसडी मुख्यमंत्री सचिवालय और संकाय सदस्य श्री शर्मा ने भी वन अधिकार अधिनियम के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए। मास्टर ट्रेनर्स श्री विजय पण्डा ने बताया कि पूरी दुनिया में ऐसा कोई कानून नहीं बना है। उन्होंने इसे दुनिया का सबसे बड़ा भूल सुधार कानून भी बताया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में इसका सर्वाधिक महत्व है क्योंकि राज्य में सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति क्षेत्र है। कार्यशाला को मास्टर ट्रेनर्स श्री विजेन्द्र अजनबी ने भी वन अधिकार अधिनियम के संबंध में जानकारी दी।