लाॅकडाउन से प्रभावित छत्तीसगढ़ प्रदेश के अन्य राज्यों में फंसे स्थानीय मजदूरों के लिए राज्य सरकार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशन में एक अप्रेल शाम 4 बजे तक संकटग्रस्त 11 हजार 584 श्रमिकों की अन्य 20 राज्यों में संकट की स्थिति में होने के संबंध में सम्पर्क किया गया। राज्य शासन द्वारा 31 मार्च और एक अप्रैल तक कुल 11 हजार 581 श्रमिकों के लिए ठहरने, भोजन आदि की व्यवस्था विभिन्न माध्यमों से करवाई गई। इसमें 31 मार्च तक 6 हजार 934 श्रमिकों और एक अप्रैल को शाम 4 बजे तक 4 हजार 647 श्रमिकों से सम्पर्क कर उनके रहने-खाने के साथ-साथ अन्य जरूरी सामग्री की व्यवस्था करवाई गई। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा देश के अन्य राज्यों में श्रमिकों की समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिए अधिकारियों का दल गठित कर सतत् निगरानी की जा रही है। इसके लिए श्रम विभाग द्वारा राज्य स्तर हेल्पलाइन नम्बर 0771-2443809, 91098-49992, 75878-22800 सहित जिला स्तर पर भी हेल्पलाइन नम्बर स्थापित किए गए हैं। हेल्पलाइन नम्बर के माध्यम से प्राप्त श्रमिकों के समस्याओं पंजीबद्व कर तत्काल यथासंभव समाधान किया जा रहा है।
श्रम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में संकटग्रस्त एवं जरूरतमंद श्रमिकों की समस्याओं का त्वरित निराकरण किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के 22 जिलों के श्रमिक 20 अन्य राज्यों में फंसे होने की जानकारी मिली है सबसे ज्यादा श्रमिक उत्तरप्रदेश में 2 हजार 679, महाराष्ट्र में 2 हजार 98, तेलंगाना में एक हजार 743, गुजरात में एक हजार 447, जम्मू में एक हजार 363 और कर्नाटक में 551 श्रमिकों के फंसे होने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में 346, ओड़िसा में 226, आंध्रप्रदेश में 187, दिल्ली में 167 और पंजाब में 143 श्रमिकों के फंसे होने की जानकारी हेल्पलाईन नम्बर सहित विभिन्न माध्यमों से मिली है।
अधिकारियों में बताया कि लाॅकडाउन के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में संकटग्रस्त अथवा फंसे हुए श्रमिकों में छत्तीसगढ़ के मुंगेली से 2 हजार 902, कबीरधाम से 2 हजार 857, राजनांदगांव से एक हजार 114, जांजगीर-चांपा से एक हजार 57, बलोदाबाजार से 895, बेमेतरा से 659, रायगढ़ से 457, बिलासपुर से 455, बलरामपुर से 209, महासमुंद से 205 और कोरबा जिले से 188 श्रमिक फंसे हुए है। जिनकी राज्य सरकार के नोडल अधिकारियों द्वारा अन्य राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों, कारखाना प्रबंधकों, नियोजकों और ठेकेदारों से समन्वय कर सतत् निगरानी की जा रही है तथा उनके खाने-पीने, रहने आदि की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है।