दण्डकारण्य का द्वारा मानी जाने वाली केषकाल की घाटियां स्वंय मे कई अनगुढ़े रहस्य अपने अन्दर लिए हुए है। इन पहाड़ियों पर रहने वाले उतने ही सुलझे एंव सरल व्यक्तित्व के धनी है। इन पहाड़ियों से वैसे तो कई नाले एवं नदियां निकलती है जिनमे दूध, बारदा, भंवरडीह, जैसी नदियां शामिल है। जो न जाने कितनो की प्यास बुझाती है परन्तु इनके उदगम स्त्रोतो मे रहने वाले फिर भी प्यासे रह जाते है ऐसे ही गांवो मे शामिल है कुएंेमारी, मिरदे, चर्रेबेड़ा कुम्मुड, भंण्डारपाल, माढ़गांव, बेड़मा, मारी जैसे कुछ नाम। इन गांवो मे आज से कुछ वर्ष पहले तक ग्रीष्म ऋतु आते ही यहां स्थिति यह हो जाती थी की पानी लाने के लिए महिलाओ को कई किलोमीटर पैदल सफर कर जाना पड़ता था। ऐसी स्थिति को देखते हुए जिला प्रषासन ने वर्ष 2016-17 से संयुक्त रणनीति अपनाकर इन क्षेत्र के लोगो की दिक्कतो को खत्म करने का बीड़ा उठाया। इसके तहत् सर्वप्रथम नारायणपुर मार्ग पर स्थित बुनागांव मे ग्रामीणो द्वारा जनभागीदारी से निर्मित तालाब को मासुरनाला से जोड़ा गया एवं इसके साथ नाले के मार्ग के मध्य आने वाले अवरोधो को हटा इस क्षेत्र मे पेयजल व्यवस्था सुनिष्चित की गई। इसमे मनरेगा के तहत् कार्यरत श्रमिको ने अभूतपूर्व योगदान दिया। इसके बाद प्रषासन घाटी के उपर बसे गांवो के जलसंकट निवारण के लिए विषेष रणनितियों का निर्माण किया गया जिसमे तीन स्तरीय रणनीति तैयार हुई पहले स्तर मे वर्षा की समाप्ति के साथ सभी महत्वपूर्ण नालो, अवनालिकाओं, छोटी-छोटी वितरणिकाओं को बोरी बंधान के माध्यम से रोकने का प्रयास किया गया ताकि जलस्तर इन इलाको मे बना रहे साथ ही इन अवनालिकाओं के मार्गो मे कई छोटी-छोटी प्राकृतिक झिरियां थी जिनका चौड़ीकरण एवं इनके चारो ओर सीमेंट एवं ईंट द्वारा पक्की बाउन्डरियों का निर्माण किया गया। द्वितीय स्तर पर स्टॉपडेम, एनिकट एवं छोटे बांधो का निर्माण किया गया। जिससे सतही जल जो बहकर सीधे नदियो मे मिल जाते थंे उनका उपयोग कृषि कार्य एवं पेयजल हेतु किया जा सके। तृतीय स्तर पर वे गांवो सम्मिलित किये गये जो पहाड़ो की ढालो पर बसे थे। यहां जल को रोकने के लिए पूर्व के तरीको का इस्तेमाल नही किया जा सकता था। इस लिए यहां प्राकृतिक अवनालिकाओं को तोड़कर यहां कुओं का निर्माण किया जा रहा है। ये कुऐं अवनालिकाओं द्वारा जल को ढलानो से होकर सीधे नदियों मे जाने से रोकती है एवं कुछ मात्रा मे जल कुओं मे रह जाता है। जो ग्रामीणो की वर्षा के अलावा अन्य मौसमो मे पेयजल एवं सिंचाई की आवष्यकताओ को पूरा करने मे मदद करता है। विदित हो केषकाल विकासखण्ड मे कुऐमारी एवं आस पास की पंचायतो मे कुल मिलाकर 5 हजार से कुओ का निर्माण किया जाना है। जिनमे 182 कुओं पर कार्य प्रारंभ हो चुका है एवं 112 से अधिक कूऐं इसी वर्ष से पेयजल आपूर्ति प्रारंभ कर देगें जबकि जिले मे पेयजल को सुनिष्चित करने के लिए डबरी एंव तालाब का निर्माण समतलिय स्थानो पर किया जा रहा है। जिनमे 343 डबरियों एवं 8 तालाबो का निर्माण जबकि 45 तालाबो के गहरीकरण कार्या शामिल है। इस सभी कार्यो को जिले मे मनरेगा के श्रमिको द्वारा कराया जा रहा है जिससे ग्रामीण स्वंय के गांवो के विकास मे स्वंय भागीदार बन रहे है। साथ ही इससे राज्य शासन के हर हाथ काम और हर किसी को रोजगार दिलाने का स्वप्न भी पूरा हो रहा है।
पण्डरपाल के मंगतू के खेतो मे आई नई जान
पण्डरपाल के निवासी 70 वर्षीय मंगतू ने बताया कि वे हर वर्ष केवल एक फसल ही ले पाते थे वर्षा के अन्यत्र अन्य मौसमो मे पेयजल एवं सिंचाई के लिए जल की भारी कमी हो जाती थी। ऐसे मे उसके खेत के समीप कुएंे के निर्माण से अब उसे पेयजल के लिए भटकना नही पड़ता साथ ही वह खरीफ फसल के अलावा सब्जियों एवं फलो का भी उत्पादन कर पाता है जिससे उसकी वार्षिक आय मे 70 हजार अधिक का इजाफा हुआ हैं।
पूर्व उपसरपंच ने बतायी परेशानियां
ग्राम कुऐं के पूर्व सरपंच ने बताया कि यहां पूर्व मे झिर्री मौजूद थी परन्तु उसका पानी गंदा होने के कारण पीने के लिए इस्तेमाल नही किया जाता था। इस पर गांव वालो ने मिलकर जिला कलेक्टर को अपनी परेषानी बताई जिसपर त्वरीत कार्यवाही करते हुए प्रषासन ने झिर्री का पुर्ननिर्माण कर उसको विस्तार देकर उसे पक्का निर्माण कराया। अब ग्रामीण नहाने एवं पेयजल के लिए इसी झिर्री का इस्तेमाल करते है। जहां शुष्क मौसमो मे पानी की एक बूंद भी नही मिलती थी आज वह गांव पेयजल के लिए आत्मनिर्भर हो चला है।
इस पर जिला पंचायत सीईओ डीएन कष्यप ने बताया कि जिले मे पेयजल की व्यवस्था को प्राथमिकता देते हुए कुओं के निर्माण को ग्रामीणो द्वारा मनरेगा के अतंर्गत कराया जा रहा है जिससे कोरोना के कारण किये गये लॉकडाउन मे भी लोगो को रोजगार का माध्यम प्राप्त हुआ है साथ ही गांवो का विकास सुनिष्चित हो रहा है।