गोधन न्याय योजना ग्रामोन्मुखी योजना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदर्शिता और गांवों में विकास की अवधारणा पर आधारित है यह योजना। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में सबसे पहले नरवा, गरवा, घुरूवा और बारी योजना शुरू की। इन सभी योजनाओं का अस्तित्व किसी न किसी रूप में आदिकाल से गावों में रहा है। अभी तक किसी ने इससे होने वाले फायदों के बारे नहीं सोचा था। वास्तव में यह योजना गांवो को आत्मनिर्भर बनाने वाली योजना है। गोधन न्याय योजना को छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार से शुरू करने की योजना है।
राज्य में गोठान के माध्यम से गोधन को एक़़त्र कर रखने का प्रयास सफल रहा है। इससे फसलों की सुरक्षा के साथ ही गांव वासियों रोजगार भी मिल रहा है। गावों की महिलाएं स्व-सहायता समूह बनाकर गोठानों में खाद बना रही हैं। खाद बेचकर आर्थिक लाभ कमा रही हैं। सरकार द्वारा गोबर खरीदने की निर्णय से ग्रामीणों में खुशी का माहौल है। पढ़े-लिखे पशुपालक और पशुधन विकास विभाग से जुड़े अधिकारी तथा विशेषज्ञ अभी से ही इस योजना के फायदों को लेकर अपने-अपने तर्क और सुझाव लोगों के बीच साझा कर रहें हैं। गोधन न्याय योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में पशु पालकों को गौ पालन की ओर प्रोत्साहित किया जा सकता है। पशुपालन के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ खेती-किसानी में जैविक खाद के उपयोग को बढ़ाने में भी यह योजना खासी महत्वपूर्ण होगी। जैविक खाद उत्पादन से ग्रामीणों को रोजगार और आजीविका का नया साधन इस योजना से मिलेगा। राज्य में फसलों का उत्पादन और बढे़गा।
पशुधन विकास विभाग के उप संचालक डॉ. एस.पी.सिंह बताया कि है कि कोरबा जिले के केवल 197 गोठान गांवों में पशुधन से मिलने वाले गोबर से ग्रामीणों को सालाना 17 करोड़ रूपये से अधिक की अतिरिक्त आय मिल सकती है। केवल गोठान गंावों से मिले गोबर से यदि कम्पोस्ट खाद बना दी जाये तो यह आय लगभग दस गुना तक बढ़कर 171 करोड़ रूपये तक पहुंच सकती है। इस पूरे कैलकुलेशन के पीछे पशुधन विशेषज्ञों का पूरा गणित है। कोरबा जिले में सात सौ से अधिक गांव हैं। जिनमें से अब तक 197 गांवों में नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी विकास कार्यक्रम के तहत सुव्यवस्थित गोठानों का निर्माण पूरा हो गया है। इन गोठान गांवों में पशु संगणना के अनुसार एक लाख 56 हजार 279 पशु हैं। औसतन छह किलोग्राम गोबर प्रतिदिन प्रति पशु के हिसाब से एक दिन में ही इन गांवों में नौ लाख 37 हजार 674 किलोग्राम गोबर का उत्पादन संभावित है। इस हिसाब से कोरबा जिले के 197 गोठान गांवों में ही प्रति वर्ष लगभग 34 करोड़ 22 लाख 51 हजार किलोग्राम गोबर का उत्पादन हो सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि राज्य सरकार पचास पैसे प्रति किलो की दर से भी ग्रामीणों से गोबर खरीदती है तो कोरबा जिले के केवल गोठान गांवों से ही प्रतिदिन ग्रामीणों को चार लाख 68 हजार 837 रूपये और प्रतिवर्ष 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार 505 रूपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इसी गोबर से यदि वर्मी कम्पोस्ट खाद बना लिया जाये तो उसका रेट लगभग दस गुना बढ़ सकता है। दो किलो गोबर से एक किलो खाद उत्पादन के मान से भी केवल गोठान गांवों से ही लगभग 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार किलो से अधिक खाद का उत्पादन हो सकता है। जिले में वर्तमान में गोठानों में उत्पादित होने वाले वर्मी कम्पोस्ट को महिला स्व सहायता समूहों द्वारा दस रूपये प्रतिकिलो की दर से बेचा जा रहा है। पशुधनों के गोबर से बनी खाद को भी यदि इसी दर पर बेचा जाता है तो ग्रामीणों को 171 करोड़ 12 लाख 55 हजार रूपये की सालाना अतिरिक्त आमदनी मिल सकती है।