राची: पत्र सूचना कार्यालय व रीजनल आउटरीच ब्यूरो, रांची तथा फील्ड आउटरीच ब्यूरो, दुमका एवं सीएसआईआर-सीएमईआरआई दुर्गापुर केे संयुक्त तत्वावधान में ‘भारत अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव: आत्म निर्भर भारत तथा वैश्विक कल्याण हेतु विज्ञान’ विषय पर आज दिनांक 17 दिसंबर 2020, गुरुवार को दूसरे वेबिनार परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में शिक्षा, विज्ञान एवं अनुसंधान क्षेत्र से जुुुुड़े प्रमुख विशेषज्ञों ने भाग लिया। विशेषज्ञोंं का कहना था कि भारत का विज्ञान के हर क्षेत्र में प्राचीन तथा वैदिक काल से ही बड़ा योगदान रहा है। विज्ञान और तकनीक से मानव समाज और विश्व के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के समाधान सम्भव हैं।

वेबिनार परिचर्चा की शुरुआत करते हुए अपर महानिदेशक पीआईबी- आरओबी, रांची  अरिमर्दन सिंह ने कहा कि भारत ने हमेशा वसुधैव कुटुंबकम पर विश्वास किया है और देश का हमेशा यह उद्देश्य रहा है कि कोई भी आविष्कार हो, वह देश और काल की सीमा से परे हो। स्वार्थ के लिए ही नहीं, परमार्थ के लिए भी हो। उसके लिए पहले जरूरत है कि हम आत्मनिर्भर बने और विज्ञान में हाई टेक्नोलॉजी के साथ-साथ आम लोगों के जीवन में खुशहाली लाए । हमारी सरकार का उद्देश्य आम लोगों की भलाई करना है। यह विज्ञान महोत्सव पहली बार वर्चुअल है। इसमें छात्र, शोधार्थी, आम जनता के लिए पैनल डिस्कशन, वर्कशॉप, लाइव डेमोंसट्रेशन, एग्जीबिशन आदि के माध्यम से साइंटिफिक टेंपर बढ़ाने की कोशिश की जा रही है ताकि सबकी रुचि और प्रतिभा बढ़े और बच्चों में खासकर ‘लर्निंग बाय डूइंग’ की क्षमता बढ़े।

सीएसआईआर-सीएमईआरआई, दुर्गापुर के निदेशक प्रो.(डॉ) हरीश हिरानी ने विज्ञान और तकनीक के समुचित अनुप्रयोग से मानव समाज और सम्पूर्ण विश्व के समक्ष उपस्थित चुनौतियों के समाधान सम्भव है । वैज्ञानिक नवोन्मेष के द्वारा न सिर्फ हम आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को मजबूत कर सकते है बल्कि विश्वकल्याण की दिशा में प्रभावी योगदान दे सकते है। आवश्यकता है प्रभावी, सस्ती और सम्पोषणीय और सतत तकनीकों के विकास की। यह संस्थान जन समुदाय के हित दृष्टिकोण से तकनीकों के समयबद्ध और समुचित उपलब्धता तथा विज्ञान के तकनीक और उत्पाद में प्रभावी रूपांतरण पर विश्वास करता है।

रांची विमेंस कॉलेज की सह – आचार्या डॉ आभा प्रसाद ने कहा कि मानव काल का इतिहास अग्नि और पहिए के आविष्कार से शुरू होता है। पहले के जो मनुष्य थे वह भोजन के लिए दूसरे जीव जंतु पर निर्भर करते थे इसके लिए उन्होंने तेज पत्थर और हड्डी से औजार बनाएं और अपने मस्तिष्क और हाथ का जो सामंजस्य बैठाया इसकी वजह से उन्हें ” होमो सेपियंस” कहा जाने लगा। इंडस वैली सिविलाइजेशन में जो वस्तुएं मिली हैं उनसे पता चलता है कि वह सभ्यता काफी विकसित थी। मकान बनाने की कला थी और वहां अच्छे प्लैनिंग से बने शहर थे। उस समय ज्योमेट्री, मेज़रमेंट, इंजीनियरिंग सभी का ज्ञान था। खेती के लिए हल का इस्तेमाल होता था, जल से व्यापार होता था, तो जहाज भी होगा। विज्ञान और तकनीक की हमेशा से भारत में उन्नति हुई है। वैदिक काल में आयुर्वेद, सर्जरी, इम्यूनिटी, पर लगातार शोध हुआ है और किताबें लिखी गई। गणित में और ज्योतिष विज्ञान में भी काफी काम हुआ है। धातु के औजार बनाने में भी विकास दिखता है। आर्किटेक्चर के विकास से ही भारत में भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। ब्रिटिश काल के समय जूलॉजी, बॉटनी, आदि पर काफी शोध हुआ। हमें समझना होगा कि साइंस के उपयोग के बिना मनुष्य की उन्नति संभव नहीं है। देश की तरक्की के लिए यह जरूरी है कि हर बच्चे में साइंस के प्रति जागरूकता बढ़े।

इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थोल्मलॉजी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की डॉ. एस आइशा रज़ा ने कहा कि विज्ञान तथा तकनीक एक अच्छा समाज बनाने में तभी कारगर होगा जब हम साइंटिफिक टेंपर को जनता में फैलाएं । उन्होंने कहा कि इसके लिए हमारे संविधान के आर्टिकल 51A के तहत भी यह बात कही गई है कि हर नागरिक को वैज्ञानिक मानसिकता विकास करने में योगदान देना चाहिए।

इस वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री शाहिद रहमान ने किया। वहीं तकनीकी सहायता तथा समन्वय सहयोग क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री ओंकार नाथ पाण्डेय तथा श्रीमती महविश रहमान द्वारा‌ क्रमशः दिया गया

वेबिनार में विज्ञान तथा जनसंचार संस्थानों के अधिकारी, कर्मचारियों, छात्रों के अलावा पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकारों एवं सदस्यों, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा मीडिया से संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए.