देश की वित्त मंत्री की अप्रैल भूल से निकला आदेश वापसी से मध्यमवर्गी वर्ग को काफी राहत मिली है। परन्तु अचानक निकला ये आदेश पूरे देश में आर्थिक स्थिति को हिलने वाला और जनता की सेविंग्स पर डाका डालने वाला आदेश साबित हुआ है। महंगाई के दौर में जहा आज मध्यमवर्गी वर्ग अपनी जेब कटुति में लगा है वही सरकार राहत देने के बजाय देशवाशियों को लोन के बढ़ते ब्याज दर पर नियंत्रण करने की जगह जनता की सेविंग्स पर नजर रखकर ब्यॉज में कटौती कर रही है। छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती के फैसले को 24 घंटे के अंदर वापस लेना सराहनीय कार्य है परन्तु वित्त मंत्री सीतारमण का ये कहना कि भूल से ये आदेश निकला है देशवाशियों को हजम नहीं हो रहा है। आखिर एक जिम्मेदार राजनेता देश की आर्थिक संस्था का प्रमुख भूल जैसे शब्द कैसे देश के सामने बोल सकता है। या फिर कहे की मोदी सरकार की इस कोरोना काल में अप्रैल फूल बनाने का जनता के लिए एक मसखीरा था। खैर जो भी हो परन्तु नेशनल सेविंग इंस्टीट्यूट (NSI) पर उपलब्ध डाटा के मुताबिक, नेशनल स्मॉल सेविंग फंड (NSSF) में पश्चिम बंगाल का सबसे ज्यादा योगदान है। वित्त वर्ष 2017-18 में NSSF में पश्चिम बंगाल का योगदान 15.1% या करीब 90 हजार करोड़ रुपए था। वित्त मंत्रालय ने 31 मार्च को अधिसूचना जारी कर 9 छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में 1.1% तक की कटौती की घोषणा की थी। यह कटौती PPF, NSC, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी छोटी बचत योजनाओं के लिए लागू की गई थी। यह कटौती 1 अप्रैल से शुरू होने वाली तिमाही यानी तीन महीनों के लिए की गई थी। लेकिन 1 अप्रैल की सुबह ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ब्याज दरों में कटौती को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। वित् मंत्रालय ने भले ही तुरंत ब्याज दरों में 1.1% तक की कटौती की घोषणा का आदेश जारी कर वैसे ही वापस ले लिए जिसे मंत्री ने भूल का आदेश कहा है जिसका श्रेय पश्चिम बंगाल के चुनाव को देना लाजमी है। भला हो चुनाव का काम से काम आदेश वापस हो गया वार्ना बेचारे किसान अभी तक तीन कानून के लिए संघर्षरत है।