शेविंग किट रखने के लिए एक छोटा सा हैंड बैग लेने के लिए एक स्टोर पर खड़ा था।
एक आदमी 1 दर्जन बाल पेन खरीदता है, बच्चों के लिए, मैं उसे टोका और कहा कि रिफिल वाले पेन खरीदो, ये तो एक बार इस्तेमाल के बाद फेंकने होते हैं।
उसने कहा कि “बच्चों को नहीं पढ़ाएं क्या ? बच्चे यही पसन्द करते हैं”।
उसका बजट और सोच दोनों इन्हीं पेन को अनुकूल मानते हैं। मैं ऐसे किस किस को कहूंगा। ये तो जागरूकता कार्यक्रम जीवन भर चले फिर भी कुछ किलो प्लास्टिक से बचा सकता हूँ। लोगों का बजट भी तो यही सही कहता है।
लेकिन क्या फाउंटेन पेन इससे महंगा पड़ता है,जबाब है नहीं वो सस्ता पड़ता है।
हम शिशु मंदिर में पढ़ते थे, वहां फाउंटेन पेन अनिवार्य था, उस समय कैडेट न 11, हीरो और केमल के फाउंटेन पेन बड़े प्रचलन में थे। स्कूल के आचार्य कहते थे कि यह लेखन को सुधरता है। मेरे पास आज भी बहुत फाउंटेन पेन रखे हैं। लेकिन आज बाजार से वो दवातें और पेन दोनो ही गायब हैं।ये सब धीरे धीरे एक साजिश और प्रचार के चलते संभव हुआ है।
भारत की शिक्षा व्यवस्था अब एक बड़ा व्यापार बन गया है। हॉस्पिटल इंडस्ट्री के बाद एडुकेशन इंडस्ट्री ही आती है। आज स्थिति यह है कि भारत में हजारों टन प्लास्टिक कचरा यह शिक्षा उद्योग फैला रहा है। दैनिक जीवन में तो प्लास्टिक भगवान बन चुका है किंतु शिक्षा में भी अब ये चरम पर है। ये 2-2 रुपये की पेंसिल अब सिर्फ स्कूलों में ही नहीं बल्कि सेमिनारों में मिलने वाले पेन के रूप में भी प्रचलित हैं।
यह काम जनजागरण से नहीं बल्कि सरकार के स्तर से उत्पादन को ही रोककर बंद की जा सकती हैं। सरकार ने पॉलीथिन पर रोक लगाई है लेकिन तय माइक्रोन से कम की पॉलीथिन आज भी बाजार में धड़ल्ले से बिक रही हैं। यूज एंड थ्रो की मानसिकता बहुत विकृत होती है।
मैं एक बार अपने एक डॉक्टर दोस्त के पास बैठा था, वो मुझे अपने पुराने सिक्के दिखा रहा था, उसके पास एक डब्बे में बहुत सारी खाली रिफिल भरी हुई थी, मैं पूछा ये क्या है ? वो बोला कि मैं इन्हें प्लास्टिक वाले को बेच दूंगा जिससे यह रिसाइकिल हो जाएं। मैं वाकई हैरान था कि वो अपने स्तर पर कितना बड़ा काम कर रहा है।
आज जब हम डिजिटल, इंडस्ट्रियल और रिडियेशन कचरे का हब बनते जा रहे हैं ऐसे में ये प्लास्टिक कचरा भी बड़ी समस्या है, स्कूलों में पर्यावरण के प्रति शिक्षा न के बराबर है।
सरकारें इस ओर कतई ध्यान नहीं दे रही हैं, न ही कम्पनियों द्वारा इस कचरे का कोई हिसाब है कि वो कितने टन प्लास्टिक कचरा पेन के रूप में देश में फैला रही हैं
सभी राजनीतिक दलों को इस पर विचार करना चाहिए, सरकारें अपने नाकारापन को बढ़ाने की जगह सख्त कार्यवाहियों को अंजाम दे और इन्हें तत्काल बन्द करे।
ये लेखक के अपने विचार है I