बिना सामाजिक सहयोग के सरकारी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकती- तुलसीराम सिलावट
पानी के अभाव में दुनिया बेपानी होकर उजड रही- जलपुरुष राजेन्द्र सिंह
ग्वालियर– ‘‘जल का मुद्दा, जीवन का मुद्दा है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए हम सबको जल संरक्षण एवं जल अधिकार को संरक्षित करने का संकल्प लेना चाहिए।’’
उपरोक्त विचार ग्वालियर के भारतीय पर्यटन एवं प्रबंध संस्थान में आयोजित ‘‘विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन’’ का शुभारंभ करते हुए भारत सरकार के नागरिक विमान उड्डयन मंत्री श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि हमें अपनी विरासत को बचा के रखना होगा, नदियों एवं तालाबों के संरक्षण के लिए हम सबको आज अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर संकल्पित होकर जल अधिकार का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जल, जीवन को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिना जल के मानव जीवन की कल्पना करना अधूरा है। जल संरक्षण एवं प्रकृति संरक्षण करने वाले लोगों में ऊर्जा का संचार अधिक दिखाई देता है, जिसका जीता जाता उदाहरण भारत में जलुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह जी हैं जिनसे मैं वर्ष 2003 में जब मिला था, तब से मैं उन्हें वैसा ही पानी के लिए चिन्तन करते आज भी देख रहा हूं। उन्होंनें कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी कैसे बचें यह सब की चिंता होनी चाहिए। श्री सिंधिया ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारे पूर्वजों ने ग्वालियर और चंबल संभाग के लोगों के भविष्य को ध्यान में रखते जल संरक्षण के तमाम उपाय किए थे, तमाम जल संरचनाओं का निर्माण किया था आज वह सब उपयोगी साबित हो रहे हैं, अतएव यह हम सभी का नैतिक दायित्व है कि भविष्य की पीढ़ियों के जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए जल संरक्षण का कार्य करें।
‘‘विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन’’ कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने कहा कि जल संसाधन विभाग की तरफ से समाज के सभी वर्गों से उनका अनुरोध है कि वह उनके विभाग की योजनाओं को जमीन में उतारने में सहयोग प्रदान करें और बिना सामाजिक सहयोग के सरकारी योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकती हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि पानी के अभाव में आज दुनिया बेपानी होकर उजड रहा है, लोग विस्थापित हो रहे हैं। आज नदियों के सामने संकट है। जल संरक्षण के लिए आज सरकारों की, जो भी योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनमें स्थायित्व का अभाव है। योजना तो बन जाएगी लेकिन निरंतरता कैसे रहेगी, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकार से आव्हान किया कि हर घर नल जल योजना जितनी महत्वपूर्ण है, उससे अधिक उसके स्थायित्व पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिसके लिए भारत को जलाधिकार की जरूरत है, भारत में पानी की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन प्रबंधन के अभाव में जल संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। उन्होनें कहा कि सरकारों की जिम्मेदारी और हकदारी समाज से ज्यादा है। हम नदियों को मां मानते हैं, लेकिन आज नदियां मैला ढोने वाली नाला में परिवर्तित हो गई हैं। मां के अपमान के लिए हम सब समान रुप दोषी हैं।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए जल बिरादरी के संयोजक सत्यनारायण बुली सेठी ने कहा कि जब हम अपने कार्यों के द्वारा समाज में कुछ करके दिखाते हैं, तभी समाज का भरोसा विकसित होता है। वर्तमान में समाज में बहुत निराशा व्याप्त हो गई है, इस निराशा को दूर करने की दिशा में राजेंद्र सिंह महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं और उनके साथ मिलकर उन्होंने अपने राज्य आंध्रप्रदेश में जल संरक्षण हेतु कार्य किया है। तमिलनाडु के सामाजिक कार्यकर्ता गुरुस्वामी ने कहा कि नदियों को बचाना वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है यदि हमें भारत के भविष्य को देखना है तो हमें धरती के ऊपर बह रही नदियों को जीवित रखना पड़ेगा।
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा कि यह कार्यक्रम ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि यह एकमात्र शहर है, जहां जल संरक्षण की विरासत की लंबी श्रंखला है, जल सम्मेलन के माध्यम से पूरे देश में जल साक्षरता के लिए एक विशेष मुहिम को आगे ले जाने की आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि जल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए जल सहेलियों ने जो काम किया है उसको पूरे देश के लोगों को सीखने की जरूरत है।
‘‘विरासत बचाओ राष्ट्रीय जल सम्मेलन’’ के कई सत्रों में जल संरक्षण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण विचार विमर्श किया गया, जिसके अन्तर्गत देश के विभिन्न राज्यों में जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, नदी पुनर्जीवन आदि पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने अनुभव सांझा किए। सत्रों के मध्य हिमालयन और पेनिनसुलर नदियों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की गई, साथ ही ग्वालियर चंबल जैसे इलाके में सूखती नदियों, बढ़ते सूखे और जल संकट के ऊपर भी गंभीर विचार विमर्श किया गया। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अवगत कराया गया कि केरल धीरे-धीरे जल संकट की तरफ बढ़ रहा है, इलाके की अधिकांश छोटी नदियां सूख गई हैं बड़ी नदियां भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। कार्यक्रम में तेलंगाना जल बोर्ड के अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री प्रकाश राव ने बताया कि उन्होंने कैसे अपने इलाके को पानीदार बनाने के लिए पिछले वर्षों में सरकार और समाज के साथ मिलकर काम किया है। पुणे से आए डॉ. विनोद बोदरकर ने नदियों के संरक्षण और संवर्धन में नदी घाटी संगठन के उपयोगिता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यदि नदियों को बचाना है तो नदी के किनारे नदी घाटी संगठन बनाने होंगे। महाराष्ट्र के विदर्भ के अंकित लोहिया ने विदर्भ क्षेत्र में जल संकट मुक्त बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को रेखांकित किया। कार्यक्रम में एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रन सिंह परमार, स्नेहिल डौंदे, मुकेश पण्डित, राघवेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह, रमेश द्विवेदी आदि ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन सर्वाेदय जन कल्याण परिषद के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के स्थानीय संयोजक मनीष राजपूत ने किया। सांध्यकालीन सत्र में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें वाराणसी के गंगा स्वच्छता के ब्राण्ड ऐम्बेसडर अमित श्रीवास्तव ने गंगा अवतरण पर आधारित नृत्य नाटिका की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंनें भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किए जाने, नदियों के प्रति लोगो के सम्मान व आधुनिक युग में मानव की लिप्सा के कारण नदियों के अतिक्रमण एवं उनकी धारा की अविरलता को अवरुद्ध किए जाने की मार्मिक प्रस्तुति दी। सांस्कृतिक संध्या का संचालन डॉ. मुहम्मद नईम ने किया।
सम्मेलन में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह द्वारा आई.आई.टी.एम. के निदेशक प्रो. आलोक शर्मा को जल संरक्षण हेतु किए जा रहे प्रयासों हेतु उन्हें सम्मानित किया। राष्ट्रीय जल सम्मेलन में 24 राज्यों के 200 से अधिक जल सामाजिक कार्यकर्ता, जल योद्धा, जलसेवक, जल सहेलियां आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम के प्रारम्भ मंे शहीदों के सम्मान में मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता जयेश जोशी, अनिल सिंह, अनिल शर्मा, राघवेन्द्र सिंह, वरुण सिंह, पारस सिंह, आर्यशेखर, श्वेता झुनझुनवाला, मस्तराम घोष, सत्यम, जितेन्द्र सिंह, महताब आलम, मानवेन्द्र सिंह आदि उपस्थित रहे।