राज्य सरकारों की घाटे में चल रही बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का अनुशासन बनाए रखने के लिए केंद्र ने सख्त कदम उठाया है। केंद्र ने कहा है कि भुगतान सुरक्षा व्यवस्था के तहत ‘लेटर आफ क्रेडिट’ अनिवार्य होगा। वहीं इसमें यह भी कहा गया है कि जो वितरण कंपनियां दीर्घकालीन बिजली समझौते के तहत भुगतान करने में चूक कर रही हैं, उन्हें खुले बाजार से कम अवधि की बिजली खरीद की अनुमति नहीं होगी।

एक सार्वजनिक बयान में कहा गया है कि बिजली मंत्री आरके सिंह ने उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें बिजली खरीद समझौते (पीपीए) के तहत भुगतान सुरक्षा व्यवस्था के रूप में लेटर ऑफ क्रेडिट को बहाल रखना अनिवार्य कर दिया गया है। इस व्यवस्था को लागू कराने वाली एजेंसियां- नैशनल लोड डिस्पैच सेंटर (एनएलडीसी) और उसकी क्षेत्रीय इकाइयां इस व्यवस्था पर नजर रखेंगी।

सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में सिंह ने कहा है, ‘इससे व्यवस्था में बदलाव आएगा और यह क्षेत्र व्यावहारिक बन जाएगा।’ बिजली अधिनियम के तहत डिस्कॉम और बिजली उत्पादकों के बीच हुए दीर्घावधि पीपीए  में पर्याप्त भुगतान सुरक्षा व्यवस्था बहाल करने का प्रावधान है। 

मंत्रालय ने कहा है कि इसके लिए प्रावधान किया गया है, उसके बावजूद लेटर ऑफ क्रेडिट नहीं दिया गया और बिजली बिल की बड़ी राशि बकाया है। बिजली उत्पादन कंपनियों का बकाया मार्च 2019 में 16,659 करोड़ रुपये था।

बयान में कहा गया है, ‘अगर ऐसी स्थिति बनी रहती है तो बिजली उत्पादक कोयले व रेलवे रैक/ढुलाई के खर्च का भुगतान नहीं कर पाएंगे और इससे बिजली के उत्पादन में कमी आएगी। बिजली उत्पादन कम होने के कारण बड़े पैमाने पर बिजली की कटौती करनी पड़ेगी। ऐसी स्थिति को देखते हुए यह जरूरी है कि उपरोक्त उल्लिखित सभी प्रावधानों को लोड डिस्पैच केंद्रों द्वारा कड़ाई से लागू किया जाए।’ केंद्र सरकार ने डिस्कॉम द्वारा शेड्यूलिंग और डिस्पैच में कोई बदलाव करने की स्थिति में उत्पादन कंपनियो को दिए जाने वाले हर्जाने को भी मंजूरी दे दी है।

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