बिलासपुर . घने जंगलों में पेड़ों की कटाई करने के बाद बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों के वितरण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। साथ ही राज्य सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका प्रस्तुत कर जंगल काट कर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टों की जांच, अपात्रों को बांटे गए पट्टों को निरस्त करने और वितरण पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में फोटो सहित अन्य प्रमाण प्रस्तुत कर बताया गया है कि ग्रामीण घनों जंगलों को काट कर वन अधिकार पट्टा प्राप्त कर रहे हैं, इस संंबंध में जानकारी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। साथ ही बताया गया है कि टीएन गोधावर्मन की याचिका पर वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने वन भैसों के संरक्षण और वनों में से कब्जा हटाने के निर्देश दिए थे।
इसके अलावा जरूरी होने पर वन क्षेत्रों में बांटे गए पट्टों को निरस्त करने के भी आदेश दिए गए थे। अब वहीं, वनों की अवैध कटाई हो रही है। याचिका में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ वन विकास निगम ने भी कब्जों के संबंध में पत्र लिखा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी वनों को हो रहे नुकसान को लेकर जल्द कार्रवाई की मांग करते हुए रिपोर्ट सौंपी है, लेकिन राज्य सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही।
कुल वन का 6.14 फीसदी हिस्से में बांटा गया पट्टा : याचिका में जानकारी दी गई है कि वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का 13 दिसंबर 2005 के पूर्व 10 एकड़ वन भूमि तक कब्जा था तो वह पट्टा प्राप्त करने की पात्रता रखेगा, इस संबंध में उसे प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ेगा। बताया गया कि छत्तीसगढ़ में सितंबर 2018 तक 401551 पट्टे अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों को वन अधिकार पट्टे बांटे गए। प्रदेश में छत्तीसगढ़ में करीब 42 फीसदी हिस्सा वन है, इसमें से 3412 वर्ग किमी यानी कुल वन भू भाग का 6.14 फीसदी हिस्से को वन अधिकार पट्टे के रूप में बांट दिया गया है।
सहकारी समितियों को भंग करने पर हाईकोर्ट की रोक : बिलासपुर हाईकोर्ट ने रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और कोरबा में निर्वाचित सहकारी समितियों को पुनर्गठित करने के लिए भंग करने के आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य शासन सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। वर्ष 2016-17 में प्रदेश के विभिन्न जिलों में सहकारी समितियों का निर्वाचन हुआ था। समितियों का कार्यकाल 2021-22 तक है। शासन ने 30 जुलाई 2019 को समितियों के पुनर्गठन के लिए भंग करने का आदेश जारी किया है। इसके खिलाफ कोरबा के भुवन कंवर, बरपाली सेवा सहकारी समिति सहित रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और कोरबा की 250 से अधिक सहिकारी समितियों ने एडवोकेट प्रफुल्ल भारत, रमाकांत पांडेय के जरिए हाईकोर्ट में याचिकाएं प्रस्तुत की है।
साथ ही आवेदन प्रस्तुत कर राज्य शासन के आदेश पर अंतरिम रूप से रोक लगाने की मांग करते हुए बताया गया है कि निर्वाचित समितियों को इस तरह भंग नहीं किया जा सकता। आवेदन पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा था। चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने समितियों को भंग करने के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। साथ ही नोटिस जारी कर राज्य शासन सहित अन्य से जवाब मांगा गया है।