नई दिल्ली। बैंकों के एनपीए यानी फंसे कर्ज की समस्या पर आखिरकार काफी हद तक लगाम लग गयी है। पिछले वित्त वर्ष चरम पर पहुंचे सकल एनपीए में चालू वित्त वर्ष की शुरुआती दो तिमाहियों में लगातार गिरावट आयी है। खास बात यह है कि बैंकों ने जो कर्ज दिए हैं, उसमें नए एनपीए बनने का अनुपात (स्लिपेज रेशियो) भी तेजी से घट रहा है।

सूत्रों के मुताबिक बैंकों की ग्रॉस नॉन परफॉर्मिंग असेट्स (जीएनपीए) राशि 31 मार्च 2018 को अब तक के उच्चतम स्तर पर 10.36 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया था लेकिन 30 सितंबर 2018 को यह घटकर 10.14 लाख करोड़ रुपये रह गया। इसी तरह जीएनपीए अनुपात भी मार्च 2018 में 11.8 प्रतिशत से घटकर 10.58 प्रतिशत रह गया है।

सूत्रों ने कहा चालू वित्त वर्ष में लगातार दूसरी तिमाही में एनपीए में कमी आयी है। हालांकि सरकारी बैंकों के जीएनपीए में गिरावट की रफ्तार अभी धीमी है। सभी बैंकों के फंसे कर्ज की कुल राशि में अधिकांश हिस्सा सरकारी बैंकों का ही है।

सूत्रों ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में फंसे कर्ज की राशि में वृद्धि अर्थव्यवस्था में प्रमुख चुनौती बनकर उभरी है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाए हैं और इन्हीं उपायों का नतीजा है कि एनपीए में कमी आयी है।

सूत्रों ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की शुरुआती दो तिमाहियों (अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर) के दौरान ‘स्लिपेज रेशियो’ भी कम हुआ है। स्लिपेज रेशियो में कमी आने का मतलब यह है कि अब नए एनपीए कम हो रहे हैं। स्लिपेज रेशियो 31 मार्च 2018 तक 7.3 प्रतिशत था जो 30 सितंबर 2018 को घटकर 3.87 प्रतिशत रह गया है।

स्लिपेज रेशियो एक साल के भीतर एनपीए हुए कर्ज की राशि और बैंकों के स्टैंडर्ड असेट्स का अनुपात होता है। स्टैंडर्ड असेट्स का आशय ऐसे लोन खातों से है जिनमें समय पर कर्ज की अदायगी हो रही है।

सूत्रों के मुताबिक एनपीए में गिरावट का यह ब्यौरा रिजर्व बैंक ने हाल में हुई संसद की वित्त मामलों संबंधी स्थायी समिति के समक्ष रखा है। कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस समिति में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी बतौर सदस्य शामिल हैं। समिति की पिछली बैठक में आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल पेश हुए थे।

 

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