✍बात कर रहा हूँ भोपाल की भोपाल प्रदेश की राजधानी है!झीलों की नगरी है! तहजीब का शहर है! सत्ता की उठापटक में ना जाने किसकी नजर लगी पता ही नही चला कुर्सियाँ पाने के खेल में दुश्मन कोरोना ने हमला कर दिया फिर क्या था देखते ही देखते अस्पताल मरीजों से भर गये!चारों तरफ अफरा तफरी भागम भाग कोई भूख से बेहाल था तो कोई अपने बच्चे बच्चियों के लिये चिंतित जो दूसरे प्रदेशों में शिक्षा अध्ययन कर रहे थे! किसी के पिता के ईलाज में दूसरे प्रदेश में फसे होने के कारण पैस खत्म हो गए थे!किसी गरीब के पास राशन नही था तो किसी के बच्चे भूख से बेहाल! किसान संतरे की नष्ट फसल से परेशान! किस से कहे भोपाल की जनता परेशान थी होती भी क्यों नही? आखिर उन ने अपने मतदान से बड़ी आशा अपेक्षा से जिनको चुना बो संकट की बिकराल घड़ी में जनता के बीच दूर दूर तक नजर नही आ रही थी! चारों तरफ अंधकार की उपापोह में प्रकाश की एक किरण चमकी अचानक आबाज आई में हूँ ना चिंता क्यों करते हो नज़र जब घुमाई तो एक महामानव का चेहरा नजर आया जिन्हें प्रदेश की जनता ‘दिग्गी राजा’कहती है सम्बेदनशील राजा जी ने असहायों का हाथ पकड़ा और मदद का सिलसिला चालू हो गया अपने निजसचिब सचिन वत्स और टीम को निर्देश दिये घूमो और देखो कोई भूखा ना रहे फिर क्या था पूरे शहर में गरीब और जरूरत मंदो तक पहले घर घर खाना सामान पहुँच बाया गया फिर नो क्षेत्रो को चुना और मौके पर ही रसोई चालू की आज दिनांक तक डेढ लाख लोगों तक भोजन पहुँचा चुके है स्वम अपने हाथों से भोजन बाट चुके है हर सम्बेदनशील मुद्दे पर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा ❗ऐसे महान पुनित कार्ये के लिये शब्द नही है ताज्जुब की बात तो ये है कि बो भोपाल से निर्बाचित नही हुये है फिर भी दिनरात मदद में लगे हुये है! काश उन जैसे अन्य नेता भी ये कार्ये करें! उन के व्यक्तितब पर किसी शायर की पंक्ति याद आ रही है-“किसी के पैर में काटा चुभे ये मीर सारे जहाँ का दर्द मेरे पैर में हो”! सचमुच में ऐसे ही व्यक्तितब के धनी है राजा साहब !