भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए उपचुनाव जीतना उतना ही जरुरी है जैसे प्राणी जगत को ऑक्सीजन की जरुरत है। सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस की नईया पार लगाने के लिए चम्बल की 16 सीटों पर फोकस मछली पकड़ने के लिए बकों ध्यानम यथार्थ बगुले का ध्यान केंद्र बिंदु दोनों दलों के लिए आवश्यक हो गया है। 2018 का विधानसभा चुनाव शिवराज विरुद्ध महाराज सिंधिया था परन्तु अब सिंधिया विरुद्ध कांग्रेस हो गया है। दिग्विजय सिंह का चुनाव मैनेजमेंट और कमलनाथ की चुनावी सर्वे रिपोर्ट का सटीक आंकलन जिताऊ उम्मीदवारों के चयन के लिए अति महतवपूर्ण है। कांग्रेस के लिए चम्बल की 16 सीटों को जीतना सत्ता प्राप्त करने के लिए भरपूर ऑक्सीजन देने जैसा है।
सत्ता छोड़कर भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से आश्वस्त है। चम्बल पार लगाने के लिए सिंधिया पर पूरा भरोसा उम्मीदवारों का पूर्व के चुनाव को जीतना है।
अशोक नगर विधानसभा पर दिग्विजय और सिंधिया दोनों का दखल बराबर रहा है । राघौगढ़ विधानसभा अशोक नगर जिले से लगा हुआ है।
अशोक नगर जहां जात पात का जोर कम
सम्राट अशोक ने उज्जैन जीतने के बाद अशोक नगर की पचर भूमि पर रात गुजारी थी इसलिए इसका नाम अशोक नगर हुआ। ग्वालियर रियासत में अशोक नगर शामिल रहा।
एससी के लिए सीट आरक्षित होने की वजह से अशोक नगर में जातिगत समीकरण की बजाय चुनाव पार्टी और प्रत्याशी की छवि पर ज्यादा निर्भर करता है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने जजपाल सिंह जज्जी को मैदान में उतरा था वही भाजपा के लड्डूराम कोरी ने मैदानी जंग ए मतदाता को हासिल करने का प्रयास किया था। दोनों प्रत्याशियों की छवि अच्छी होने के कारण कांटे की टक्कर हुई परन्तु सिंधिया का हाथ जज्जी पर होने से लड्डू राम को विधायकी नहीं मिल सकी । क्षेत्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, जैन, कुशवाहा आदि के भी वोट निर्णायक की भूमिका में रहे।
ऐसा क्षेत्र जहां जो नेता आया उसकी कुर्सी खतरे में।
अशोक नगर शहर के बारे में चर्चा रहती है कि जो भी मुख्यमंत्री अब तक अशोक नगर आया उसको अपनी कुर्सी गावनि पड़ी। जिसकी वजह से भोपाल के वरिष्ठ नेता यहाँ आने से घबराते है। 1975 में कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी पार्टी के अधिवेशन में शामिल होने अशोक नगर आये और इसी साल दिसंबर में उनको राजनीतिक कारणों से कुर्सी छोड़नी पड़ी। 1977 में जब श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री थे तब वो अशोक नगर में एक लोकार्पण कार्यकर्म में आये करीब दो साल बाद उनकी कुर्सी जाती रही। 1988 में माधव राव सिंधिया के साथ मोतीलाल वोरा अशोक नगर के रेलवे स्टेशन का उद्घाटन करने आये। कुछ वक़्त बाद वो भी मुख्यमंत्री नहीं रहे। 2001 में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा का उपचुनाव के प्रचार के लिए अशोक नगर गए तब दिग्विजय सिंह को भी 2003 में कुर्सी गंवानी पड़ी। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी अशोक नगर क्षेत्र से हेलीकॉप्टर से निकली थी और कुछ समय बाद कुर्सी गंवानी पड़ी।
अशोक नगर विधानसभा सीट में कुल मतदाता 1 ,91 , 009 है। यहाँ से कांग्रेस के महेंद्र सिंह कालूखेड़ा 1980 में चुनाव जीते थे। लड्डूराम कोरी ने 2008 में भाजपा से चुनाव जीता था। इस बार भाजपा का साथ मिलने के कारण कांग्रेस के उम्मीदवार के लिए चुनौती कठिन रहेगी।
सिंधिया समर्थक और भाजपा के जसपाल सिंह जज्जी क्षेत्र में युवा वर्ग को सेहतमंद का सन्देश भी साफ़ देते नजर आते है। सत्ता सुधार से बातचीत में कहा कि 15 महीनो में मुझे कमलनाथ सरकार ने काम नहीं करने दिया परन्तु मैंने इन एक महीने में अपनी क्षेत्र की जनता को राशन सामग्री वितरण में कोई कमी नहीं आने दी और कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने के लिए युवा वर्ग को नियमित व्यायाम अपनी इम्मुनि सिस्टम बढ़ाने के लिए जागरूक किया। प्रतिदिन एक हज़ार से अधिक गरीब परिवार श्रमिकों के भोजन पैकेट की व्यवस्था की।