रांची: पत्र सूचना कार्यालय व रीजनल आउटरीच ब्यूरो, रांची तथा फील्ड आउटरीच ब्यूरो, दुमका केे संयुक्त तत्वावधान में ‘सरदार पटेल :किसान आंदोलन के सरदार से लौह पुरुष तक’ विषय पर आज दिनांक 31 अक्टूबर 2020, शनिवार को वेबिनार परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में समाज, शिक्षा एवं सेवा क्षेत्र से जुुुुड़े प्रमुख लोगों ने भाग लिया। सबका मत था कि यह सरदार वल्लभ भाई पटेल केे व्यक्तित्व और दूरदर्शिता की ही देन है कि भारत एक लोकतांत्रिक संघ के रूप मेंं मजबूती से अनेकता में एकता के भाव को सार्थक बनातेे हुए निरंतर आगे बढ़ रहा है।
इस वेबिनार के मुख्य अतिथि वक्ता, रांची के माननीय लोक सभा सांसद श्री संजय सेठ ने अपने उद्बोधन में कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को अखंड भारत के रूप में देखा, उनका मंत्र था देश को एक माला में पिरोने का। देश के प्रति समर्पण में उनकी भूमिका अति सराहनीय है। आज हम जात-पात में बंध रहे हैं, सरदार वल्लभ भाई पटेल इस सोच के विरोधी थे। उन्होंने 500 से अधिक रियासतों का विलय कराया। हैदराबाद के निजाम पाकिस्तान में जुड़ना चाहते थे लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर निर्णय से सारी रियासतों को एक कर भारत का एकीकरण किया। उनका मानना था कि हर नागरिक यह अनुभव करे कि यह देश उनका है। स्वतंत्रता की रक्षा करना हर एक भारतीय का कर्तव्य है। वे राष्ट्रवाद में अंकित होने वाला सबसे पहला नाम है, लेकिन समय के साथ, राजनीति के कारण उनके व्यक्तित्व को कम आंका गया। शताब्दियों तक एकता और अखंडता के लिए जो नाम लिया जाएगा वह सरदार वल्लभभाई पटेल का है। इतिहास ने सरदार वल्लभभाई पटेल के साथ न्याय नहीं किया लेकिन दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमा बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
वेबिनार परिचर्चा की शुरुआत करते हुए अपर महानिदेशक पीआईबी- आरओबी, रांची श्री अरिमर्दन सिंह ने यह जानकारी देते हुए कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की 145वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के केवड़िया में उन्हें श्रद्धंजलि दी, बताया कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता के बाद देश की बिखरी हुई रियासतों के एकीकरण में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कैरट एंड स्टिक तरीका अपनाया और जिस कर्मठता के साथ उन्होंने सारे काम किए, अखंड भारत के निर्माण में उनका योगदान सराहनीय है। वे एक किसान परिवार से थे। अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनका शुरुआती जीवन सुखमय नहीं था। उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में मैट्रिक किया और बाद में लंदन पढ़ाई के लिए उनकी जगह उनके बड़े भाई चले गए। जीवन में उनके धैर्य की परीक्षा बहुत बार हुई। एक बार कोर्ट में बहस के दौरान उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ लेकिन उन्होंने वह बहस जारी रखी।
इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ आशीष शुक्ला ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के खात्मे के बाद देसी रियासतों का भारत में विलय एक बड़ी चुनौती थी। 562 रियासतों को इकट्ठा करना बहुत कठिन कार्य था क्योंकि इन रियासतों के अपने साधन थे, अपने विशेषाधिकार थे। उस समय की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उन सभी राज्यों एवं स्थानीय रियासतों को विलय कर पूर्ण स्वराज की अवधारणा के उद्देश्य की प्राप्ति की जिम्मेदारी श्री वी. पी. मेनन और सरदार वल्लभभाई पटेल को दी। उनके द्वारा एक इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन तैयार किया गया जिसमें ज़्यादातर रियासतों ने बिना खून खराबे, बिना बल के प्रयोग के, हस्ताक्षर कर दिए। कुछ रियासतें थी जैसे हैदराबाद, ट्रैवनकोर, जूनागढ़, कश्मीर जिन्हें मिलाने में कुछ समय लगा। सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम संविधान के शिल्पकार के रूप में भी जाना जाता है, उन्होंने मूल अधिकारों पर इंटेरिम रिपोर्ट तैयार की। दोहरी नागरिकता के प्रश्न पर उन्होंने नियंत्रण करने को कहा। आज कोई भी व्यक्ति, किसी भी जाति, धर्म, लिंग का हो, कोई भी नौकरी पा सकता है। उस समय रजवाड़े पद/ उपाधियां देते थे जैसे रायबहादुर इत्यादि। सरदार वल्लभभाई पटेल ने इन सभी पदों/ उपाधियों को खत्म कर दिया ताकि आजादी के बाद कोई राजनीति दल इन पदों का ग़लत इस्तेमाल न कर पाए। अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए उन्होंने जॉइंट एलेक्टोरेट का समर्थन दिया। उन्होंने कहा कि जो सेपरेट इलेक्टोरेट चाहते हैं, उनकी जगह पाकिस्तान में है। सरदार पटेल भारत के एकीकरण में विश्वास रखते थे, उनका मानना था कि भारत में विभाजन के लिए जगह नहीं।
वरिष्ठ पत्रकार एवं आकाशवाणी रांची के पूर्व उप निदेशक, समाचार श्री नीरज पाठक ने कहा कि जब भी राष्ट्रीय एकता की बात होगी तो सबसे ज्यादा विनम्रता से सरदार पटेल का नाम लिया जाएगा। आजादी के पश्चात सरदार पटेल के सामने बहुत सारी चुनौतियां थी। भारत में 562 रियासतों का एकीकरण और साथ ही आजादी के पश्चात 80 लाख रिफ्यूजी पाकिस्तान से आए थे। भारत में किस तरह नागरिक के रूप में उनकी स्थापना हो और देश में शांति बनी रहे, यह सरदार पटेल की ज़िम्मेदारी थी। उन्होंने देश को एडल्ट फ्रेंचाइज दिया, जिससे 21 वर्ष का कोई भी व्यक्ति वोट कर सकता है, चाहे वह किसी भी भाषा, धर्म या जाति का हो। 1947 से पहले देश के नेताओं को शासन का अनुभव बहुत कम था फिर भी जिस तरह से देश का एकीकरण हुआ, विकास की धारा तय की गई, वो सराहनीय है। मतभेद जरूर रहे लेकिन कभी भी कोई भी राष्ट्र हित के खिलाफ नहीं रहा।
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, झारखंड के ब्यूरो चीफ श्री इंदुकांत दीक्षित ने कहा कि जब देश आजाद हुआ तब रियासतों को छूट दी गई कि वे किसी भी तरफ जा सकते हैं लेकिन यह सरदार पटेल की इच्छा शक्ति थी कि उन्होंने सब को एकजुट किया और आजादी को सही अर्थ दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अनुच्छेद 370 हटा कर सरदार पटेल को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि दी है। सरदार पटेल और मीडिया के संदर्भ में श्री दीक्षित ने बताया कि आजादी के पश्चात देश में पंजाब, बंगाल में असहिष्णुता की स्थिति थी, शरणार्थी आ रहे थे लेकिन तब भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को मीडिया की बंदिश स्वीकार नहीं थी। उस समय कई विदेशी लोग रिपोर्टिंग कर रहे थे और कई रिपोर्ट बाएस्ड थे, लेकिन वायसराय के कहने के बावजूद कि इन रिपोर्टर्स पर रोक लगाया जाए, सरदार ने मीडिया पर रोक लगाना उचित नहीं समझा। न्यूज़ एजेंसी ए.पी.आई. का जो हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में गया वह सरकार के अधीन हो गया लेकिन जो भारत के हिस्से में आया, सरदार पटेल ने उसे ट्रस्ट बनाया और पीटीआई का गठन किया। सरदार पटेल ने न्यूज़ मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिश नहीं की।
जामिया मिलिया विश्व विद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर जावेद आलम ने लाहौर के हिस्टोरियन अब्दुल मजीद की किताब को कोट करते हुए कहा कि उसमें सरदार वल्लभभाई पटेल को हीरो ऑफ बारडोली कहा गया है और साथ ही उन्होंने राजमोहन गांधी की किताब पटेल लाइव से भी सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवन की कई दिलचस्प बातों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि किस तरह 22 वर्ष की उम्र में सरदार वल्लभभाई पटेल ने मैट्रिक किया और उनकी जगह उनके भाई लंदन वकालत पढ़ने चले गए। लेकिन फिर सरदार पटेल जब बाद में वकालत पढ़ने गये तो 3 साल का कोर्स 2 साल के अंदर ही खत्म कर लिया। उन्होंने कृषि और किसानों के संबंध में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान और आंदोलन के बारे में जानकारी पूर्ण परिचर्चा की।
एमिटी यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस एंड स्ट्रेटजिक स्टडीज, नोएडा के सहायक प्रोफेसर डॉ सौरभ मिश्रा ने बताया कि सरदार वल्लभभाई पटेल को राजनीति में रुचि नहीं थी वह अच्छे बैरिस्टर थे और अपना धर्म निभा रहे थे लेकिन गांधीजी के व्यक्तित्व ने उन्हें भारतीय राजनीति में खींच लिया। वे गांधीजी की विचारधारा में पूरी तरह समर्पित थे। लेकिन उसी व्यक्ति का लौह पुरुष कहना यह कोई विरोधाभास नहीं है, वे गांधीवाद होते हुए भी यथार्थवादी थे। उन्होंने राजनीतिक सूझबूझ के साथ भारत को जोड़े रखा। जो कमी गांधी और नेहरू में थी, वह उन दोनों की कमियों के पूरक थे तथा एक संपूर्ण संतुलित व्यक्तित्व थे।
वेबिनार में जनसंचार संस्थानों के विद्यार्थियों के अलावा पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकारों एवं सदस्यों, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा मीडिया से संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।
इस वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री शाहिद रहमान ने किया। वहीं तकनीकी सहायता तथा समन्वय सहयोग क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान और श्री ओंकार नाथ पाण्डेय द्वारा दिया गया।