रांची :
आजादी के आंदोलन में मैडम भीकाजी कामा जैसी महिला आंदोलनकारियों का योगदान स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने के काबिल है : अरिमर्दन सिंह
विदेशी धरती से स्वाधीनता आंदोलन के लिए मैडम भीकाजी कामा का योगदान अतुलनीय है
: डॉक्टर जोहैब हसन
माता भीकाजी कामा देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक सफल सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं : डॉक्टर नीरज कुमार सिंह
भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के क्रम में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज शुक्रवार को पत्र सूचना कार्यालय, रांची, प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची और क्षेत्रीय लोक संपर्क ब्यूरो, दुमका एवं गुमला के संयुक्त तत्वावधान में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता मैडम भीकाजी कामा के पुण्यतिथि के अवसर पर वेबिनार का आयोजन किया गया।
वेबिनार में शामिल अतिथियों एवं वक्तागनों का स्वागत करते हुए पत्र सूचना कार्यालय, रांची एवं प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची के अपर महानिदेशक श्री अरिमर्दन सिंह ने कहा कि मैडम भीकाजी कामा की पुण्य तिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं । मैडम भीकाजी कामा का जीवन वृतांत हमें बताता है कि किस प्रकार मैडम भीकाजी कामा ने भारत की आजादी के आंदोलन को शक्ति प्रदान करने के लिए तन, मन, धन से अपने आप को न्योछावर कर रखा था। मैडम कामा जैसी महान महिलाओं का ही योगदान है कि देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ ।
वेबिनार की परिचर्चा में विषय प्रवेश कराते हुए क्षेत्रीय प्रचार कार्यालय , गुमला की क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान ने कहा कि आज हम लोग यहां एक ऐसी महान महिला स्वतंत्रा सेनानी को याद करने के लिए जमा हुए हैं जिनका भारत के स्वाधीनता आंदोलन में योगदान नई पीढ़ी के लिए निश्चित ही प्रेरणादायक संस्मरण होगा।
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुणे कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एवं कॉमर्स, पुणे के इतिहास संकाय के प्रमुख सहायक प्राध्यापक डॉ जोहैब हसन ने मैडम भीकाजी कामा की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मैडम कामा विलक्षण प्रतिभाओं से परिपूर्ण महिला स्वाधीनता सेनानी थीं।
मैडम कामा ने अपने जीवन का एक लंबा समय विदेश में बिताया और वहीं से लगातार वह स्वाधीनता आंदोलन को बल देती रहीं। जर्मनी में आयोजित सेकंड सोशलिस्ट कांग्रेस के दौरान उन्होंने अपने हाथ से बना भारत का झंडा फहराया। यह झंडा आज भी पुणे के बाल गंगाधर तिलक संग्रहालय में मौजूद है।
डॉ जोहैब ने आगे बताया कि मैडम कामा एक निर्भीक और कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। मुंबई में प्लेग महामारी के दौरान वह लगातार प्लेग ग्रसित लोगों की सेवा करती रहीं यहां तक कि उन्हें खुद भी प्लेग हो गया।
मैडम कामा का जीवन वृतांत यह दिखाता है कि विदेशी धरती पर रह कर भी वह भारत की आजादी एवं विकास के लिए कार्यरत थीं। स्वाधीनता आंदोलन के समय जारी होने वाली पत्रिका जैसे ‘वंदे मातरम’, ‘तलवार’ आदि को वह यूरोप में भी प्रचारित / प्रसारित कर रही थीं। मैडम कामा का मशहूर कथन था कि हम लोग सब भारत के लिए हैं और भारत भारतीयों के लिए है।
वेबिनार के दुसरे वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीएमपी पीजी कॉलेज, प्रयागराज के इतिहास विभाग के मध्यकालीन संकाय सहायक प्रोफेसर डॉक्टर नीरज कुमार सिंह ने कहा कि विलक्षण प्रतिभाओं वाली माता भीकाजी कामा लगभग 34 वर्ष विदेशी भूमि पर रह कर भारत की आजादी के लिए संघर्ष करती रहीं। जहां एक तरफ उनके पति रुस्तम कामा अंग्रेजी शासन के बड़े वंदनीय थे, वहीं मैडम भीकाजी पूर्णरूपेण भारतीय अवधारणाओं से प्रेरित थीं। वो कहती थीं कि उनकी शादी उनके उद्देश्य से हो चुकी है।
डॉक्टर नीरज ने बताया की विदेश में लोग उन्हें एक नई जॉन ऑफ आर्क के रूप में याद करते हैं, जबकि दूसरी ओर भारत में मां काली की एक अवतार के रूप में देखा गया। विदेश में वह सोशलिस्ट मूवमेंट से जुड़ी जो गुलाम देशों की आजादी के पक्षधर थे। वह 1905 में दादा भाई नौरोजी के संपर्क में भी आई जो उस समय के कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता थे और उनकी पर्सनल असिस्टेंट भी रहीं। एक बार जब वह अमेरिका थीं तब वहां भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वहां के प्रबुद्ध वर्ग को भारत की आजादी के लिए प्रोत्साहित किया। वे अपने बाद आने वाली कई स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा बनीं।
वेबिनार का लाइव प्रसारण यू-ट्यूब पर भी किया गया एवं प्रतिभागियों को ई-सर्टिफिकेट भी दिया गया।
वेबिनार का समन्वय क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री शाहिद रहमान ने किया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।