तेंदू यानी डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन के पत्तों का उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है. आदिवासी इलाकों में इसे हरा सोना भी कहा जाता है क्योंकि वनोपज संग्रह पर निर्भर एक बड़ी आबादी के लिए तेंदूपत्ता आय का सबसे बड़ा स्रोत है. द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़े के अनुसार तेंदूपत्ता के संग्रहण में देश भर में 75 लाख लोगों को लगभग तीन महीने का रोजगार मिलता है I
इसके अलावा इन पत्तों से बीड़ी बनाने के काम में लगभग 30 लाख लोगों की रोजी-रोटी चलती है.1964 से पहले देश भर में तेंदूपत्ता का बाजार खुला हुआ था.
वन विभाग पत्तों को एकत्र करने के अधिकार की नीलामी किसी भी व्यक्ति, समूह या ठेकेदार को देता था. लेकिन तेंदूपत्ता एकत्र करने के बदले ठेकेदारों द्वारा कम पैसा देने और एकत्र करने वालों से अधिक काम लेने की लगातार आने वाली शिकायतों के बाद 1964 में अविभाजित मध्यप्रदेश ने तेंदूपत्ता के व्यापार का राष्ट्रीयकरण किया .I
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के डोटोमेटा के सरपंच जलकू नेताम खुश हैं कि इस बार उनके गांव के लोगों को तेंदूपत्ता की सही कीमत मिलेगी. उनका आरोप है कि वनोपज खास कर तेंदूपत्ता संग्रहण के नाम पर अब तक आदिवासियों का शोषण होता रहा है और अब उनके गांव के लोग इस शोषण का शिकार नहीं होंगे.
जलकू नेताम कहते हैं, “देश का पंचायत कानून, पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र में आदिवासियों को यह अधिकार देता है कि उनकी ग्रामसभा परंपरागत कामकाज और परंपरा के अनुरुप अपने हक में कोई फैसला कर सके. इसलिए हमने यह फैसला किया है कि जहां तेंदूपत्ता की अच्छी कीमत मिलेगी, हम तेंदूपत्ता वहीं बेचेंगे. देश का वन अधिकार कानून भी हमें वन संसाधनों के संग्रहण, संरक्षण और संवर्धन का अधिकार देता है.”
आप सबको बताते हुए संतोष हो रहा है कि आज हमने किसानों, पशुपालकों, महिला समूहों, तेंदूपत्ता संग्राहक और ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर परिवारों के बैंक खाते में 1125 करोड़ रुपए की राशि अंतरित की है।
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) March 31, 2022