देखते ही देखते ईस्वी वर्ष सन 2019 की  भी विदाई हो गई और प्रारंभ हो गया है सन 2020  याने ट्वेंटी ट्वेंटी  ।

वैसे तो भारतीयों के लिये नवसंवत्सर से ही  नया वर्ष प्रारंभ होता है । लेकिन विविध धर्मों खासकर हिन्दू , मुस्लिम , सिख ,ईसाई , बुध , पारसी , जैन , सिन्धी सबके अपने वर्षारम्भ  और कलैंडर हैं , यहां तक कि सिर्फ़ भारत में ही विभिन्न क्षेत्रों में भी अलग अलग नव वर्ष की परम्परा प्रचलित हैं । चूंकि भारत पर आखिरी शासन लम्बे समय तक अंग्रेजों का रहा , शायद इसी कारण चाहे न चाहे पूरे देश में अधिकारिक रूप से ईस्वी सन कलैंडर को मान्यता दी गई जो आज तक जारी है । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यही प्रचलित और मान्य है सो  इस पर बहस अब कोई मायने नहीं रखती ।
 वरना विगत वर्षों में देश पर क्षेत्रीय स्वतंत्रता ने जिस तरह से उभरने की कोशिश की है , उस के अनुसार तो एक ही राष्ट्र में कम से कम दस बारह नववर्ष और इतने ही कलैंडर प्रचलन में होते और राष्ट्रीय संप्रभुता सकते में ।
हालांकि एक विशुद्ध हिन्दू तबका अब भी ईस्वी कलैन्डर को स्वीकार करने से गुरेज करता है और यह उचित भी है , लेकिन प्रायोगिक बाधाओं के सामने उसे भी घुटने टेकने पड़ते हैं ।
वस्तुतः परिवर्तन संसार का नियम है और संख्याबल वर्तमान आवश्यकता ।
अतः ईस्वी कलैंडर को पकड़ कर चलना अभी हमारी आवश्यकता भी है और समझदारी भी । जब तक कि विक्रम संवत एक बार फिर से समूचे विश्व द्वारा एकमात्र सटीक कलैंडर के रूप में सर्वमान्य रूप से स्वीकार नहीं किया जाता , हमें वर्तमान सर्वप्रचलित कलैंडर का ही अनुसरण करना होगा ।
हालांकि गणना , अंक शास्त्र और खगोलीय स्थितियों पर आधारित भारतीय कलैंडर तथा पंचांग अपने आप में बेजोड़ और अकाट्य हैं , लेकिन फिर भी इसे विश्वब्यापी सम्मान दिलाने हेतु तीव्र और ब्यापक प्रयत्न आवश्यक हैं।
भारत वह राष्ट्र है जहाँ उगते हुए सूर्य की उपासना भी होती है और अस्त होते सूर्य की पूजा भी अर्थात हम निर्माण और निर्वाण के सत्य से भलीभांति परिचित हैं और प्रथ्वी तथा अन्य ग्रहों की चाल से भी  , सिर्फ जरूरत है समूचे विश्व में इस सत्य को प्रमाण सहित स्वीकार कराने की ।  शुभमस्तु ।
अनन्त प्रकाश त्रिपाठी
स्वतंत्र लेखक

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