भोपाल। इब्राहिमपुरा में रहने वालीं 62 साल की हमीदा बी गैस हादसे को लेकर आज भी सहम जाती हैं। उस रात की दास्तां बयां करते हुए उनकी आंखें भर आती हैं। गैस त्रासदी के बाद उनके परिवार के एक-एक कर 41 लोग जान गंवा चुके हैं। न्याय के लिए संघर्ष की शुरुआत में उन्होंने चंदे के रूप में चवन्नी-अठन्नी लोगों से जुटाई।
खुद गंभीर रूप से गैस जनित गंभीर बीमारियों का सामना कर रहीं हमीदा बी भोपाल की अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में कानूनी जंग लड़ रही हैं। लोगों का समर्थन हासिल करने में जुटीं हमीदा बी ऑटो रिक्शा से पूरे शहर में घूम रही हैं। गैस पीड़ित जनता से लेकर सुप्रीम कोर्ट में बैठे कानूनविद् उन्हें देखते ही पहचान लेते हैं। हमीदा के लिए बची हुई जिंदगी जीने का एक ही मकसद है… गैस पीड़ितों को न्याय दिलाना।
संघर्ष के जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमीदा के घर में अब खाना बनाने वाला ही नहीं बचा। लिहाजा खाने के लिए उनका टिफिन आता है।

गैस पीड़ितों के हक में फैसला नजीर बने
इंजीनियर की नौकरी छोड़कर गैस पीड़ितों के संघर्ष में जुटे संगठन प्रमुख अब्दुल जब्बार का कहना है कि कानून के स्तर पर अभी भी गैस पीड़ितों के केस विभिन्न अदालतों में अटके हैं। सुप्रीम कोर्ट में मुआवजे की पिटीशन 2016 से विचाराधीन है। मेडिकल केयर का मामला जबलपुर हाईकोर्ट में चल रहा है। इसके साथ ही गैस कांड से जुड़े केस के आरोपितों को सख्त सजा की मांग का मामला भोपाल कोर्ट में है।

वह चाहते हैं कि इन मामलों के फैसले नजीर बनें, ताकि बड़ी कंपनियां हादसे के बाद आसानी से कानून के चंगुल से बच नहीं सकें। हम सभी गैस पीड़ितों को न्यायालय से न्याय का इंतजार है।
कैंसर, लकवा, खून की उल्टियों से हुई परिजनों की मौत

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन की वरिष्ठ सदस्य हमीदा बी उस रात के मंजर को याद कर भावुक हो जाती हैं। उन्होंने बताया कि 2 दिसंबर 1984 की आधी रात को जान बचाने के लिए मची भगदड़ में मेरा परिवार पैदल मिलिट्री गेट से होते हुए सुबह हमीदिया अस्पताल परिसर तक पहुंचा था। वहां चारों तरफ सिर्फ लाशें पड़ी थीं। भगदड़ में मेरी बेटी की मासूम बच्ची भी मां की गोद से बिछड़ गई। परिवार उसे ढूंढने के लिए बच्चों के कफन हटा-हटा देख रहे थे, तभी पानी की टंकी के पास एक चादर को हटाते ही नवासी (नातिन) का शव दिखा। उसका पूरा बदन हरा पड़ चुका था। उस दिन जहां तक नजर जाती थी, सिर्फ मौत का ही मंजर दिखाई दे रहा था।
उनके परिवार के लोग खून की उल्टियां, दम फूलने, कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों से काल के गाल में समा गए। न्याय के लिए उन्होंने अब्दुल जब्बार की अगुवाई में संगठन बनाकर पीडितों को न्याय दिलाने का संकल्प लिया। उन्हें फक्र है कि गैस पीड़ितों के लिए कई सुविधाएं मिलीं, अस्पताल खुले, रोजगार के अवसर खुले, लेकिन अफसोस है कि समुचित मुआवजा की अपील का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

संगठन की सदस्य सालेहा रजा भी गंभीर गैस पीड़ित शहर के 36 वार्डों में लगातार दौरा कर लोगों को हरसंभव मदद दिला रही हैं।

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