राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से ग्रामीण महिलाओं के सामाजिक आर्थिक जीवन में बदलाव आ रहा है। कोण्डागांव जिले के ग्राम सलना की स्व समूह की महिलाएं फैंसी एवं ईको फ्रेंडली राखी निर्माण सहित अन्य पारंपरिक गतिविधियांे से जुड़कर आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रही है। रक्षाबंधन के त्यौहारी सीजन में इन महिलाओं द्वारा अपनों हाथों से रंग-बिरंगी और ईकों फ्रेंडली राखियां निर्माण से न केवल रोजगार के एक नये अवसर उपलब्ध हुए है, बल्कि वे हो रही है। वही आर्थिक रूप संे सशक्त भी हो रहे है। उल्लेखनीय है कि आमतौर पर पहले मशीन निर्मित और बाहर से मंगायी गयी राखियां की ही बिक्री होती थी। सलना की स्व-सहायता समूह की महिलाएं अपनी कलात्मक अभिरूचि के साथ त्यौहारी सीजन में स्वरोजगार का एक नया साधन तलाशा है। निश्चित ही स्थानीय बाजारों में स्वनिर्मित राखियों की आपूर्ति करने का प्रयास सराहनीय कदम है।
सलना की इन ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि वे इंटरनेट में डिजाईन देखकर व स्थानीय वस्तुओं का इस्तेमाल कर सुंदर और आकर्षक राखियों का निर्माण किया है। हस्त निर्मित राखियों की मार्केटिंग को भी अच्छा प्रतिसाद मिला है। स्थानीय दुकानदारों ने भी इन राखियों की खरीदी में खासी दिलचस्पी दिखाई है। दन्तेश्वरी स्व.सहायता समूह की सदस्य श्रीमती प्रीति सोनी एवं देवन्ती नेताम ने बताया कि जनपद पंचायत विश्रामपुरी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने हमें राखी बनाने लिए प्रोत्साहित किया। सलना गांव की कुल 10 स्व.सहायता समूह ने राखी निर्माण करने में रूचि दिखाई और अब स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्रियों से भी राखियां बनाई जा रहीं है। यहां तक की परिष्कृत गोबर जैसे उत्पाद एवं छींद पेड़ के पत्तों से भी इको फ्रेंडली राखी बनायी गयी हैं। उनके पास पांच रूपये से लेकर 35 रूपये तक की राखियां उपलब्ध है। समूहों द्वारा तीन हजार राखी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। सलना की एक स्थानीय दुकानदार श्रीमती लक्ष्मी सेठिया ने बताया कि की हर साल बेचने के लिए बाहर से राखी मंगाते थे। इस वर्ष कोविड-19 के कारण लॉकडाउन होने से उन्हें बाहर से राखियां गंमाने में परेशानी हो रही थी। जब उन्हें पता चला कि गांव की महिलाएं ही अपने हुनर से राखी बना रहीं है तब कुछ उम्मीद जगी और अब उनके अलावा अन्य विकासखण्ड के कई दुकानदार भी यहीं से राखी खरीदकर बाजारों में बेच रहे हैं।
समूूह की महिलाओं से चर्चा करने पर बताया गया कि ग्राम सलना कलस्टर में 50 समूह है और ये सभी महिलाएं राखी निर्माण के अलावा मास्क सिलाई, ट्री-गार्ड निर्माण, मुर्गी बकरी पालन, मशरूम उत्पादन, दोना पत्तल, महुआ लड्डू निर्माण जैसी विभिन्न रोजगार परक गतिविधियों में जुड़ी हुई हैं। इससे इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक सुधार भी आया है।