जन्मजात अविकसित या किसी दुर्घटना आदि के बाद डिसएबल होने वाले मासूम बच्चों की इंदौर जिला अस्पताल में बीते दो साल से फिजियोथेरेपी बंद है, क्योंकि इंदौर जिला अस्पताल की फिजियोथेरेपिस्ट को भोपाल जिला अस्पताल परिसर में संचालित समर्पण केंद्र में पोस्ट नहीं होने के बाद भी अटैच करके रखा गया है।
दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कुछ चुनिंदा जिलों में फिजियोथेरेपिस्ट की तैनाती की गई है, जोकि अधिकतर जिला अस्पताल परिसर में ही डिसएबल बच्चों की एक्सरसाइज करवाने के साथ ही सलाह देने का काम करते हैं। इसी के तहत इंदौर जिले में श्रीमती प्रीति जायसवाल की नियुक्ति की गई थी, जिनको करीब दो साल पहले भोपाल के जिला जेपी अस्पताल परिसर में एनएचएम के समर्पण केंद्र में अटैच कर दिया गया। तब से उनका वेतन जिला जेपी अस्पताल से ही निकलता है। दूसरी ओर इंदौर जिला अस्पताल में करीब ढ़ाई सौ बच्चों के नाम दर्ज बताए जाते हैं, जिनकी फिजियोथेरेपी बीते दो साल से बंद पड़ी है।
सैकड़ों बच्चों के नाम हैं दर्ज
नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत आरबीएस (राष्ट्रीय बाल सुरक्षा) के प्रोग्राम में डीईआईसी इंदौर जिला चिकित्सालय इंदौर में फिजियोथेरेपिस्ट की नियुक्ति की गई। ताकि इंदौर की श्रमिक बस्तियों के साथ ही आसपास के इलाकों के गरीब, मजदूर परिवारों के अविकसित या एक्सीडेंट के कारण डिसएबल बच्चों की फिजियोथेरेपी करवाई जा सके। ईआईसी का मुख्य उद्ेदश्य यह है कि 0 से 18 साल तक के बच्चो की दिव्यांगता का प्रथम स्तर पर परीक्षण कर उन्हें उपचार की सुविधाएं प्रदान की जा सके। इससे उनको बाद में सामान्य जीवने जीने के लिए समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जाता है।
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तत्काल चेक करवाते हैं
सिर्फ एक पोस्ट होने के बाद भी इंदौर के फिजियोथेरेपिस्ट को भोपाल अटैच कर दिया गया, जोकि गलत है, इस बारे में एनएचएम आॅफिस को लिखेंगे, ताकि हमारे जिले के फिजियोथेरेपिस्ट की वापसी हो सके।  डिसएबल बच्चों की फिजियोथेरेपी बीते दो साल से ही ठप पड़ी है।
डॉ. प्रवीण जड़िया, सीएमएचओ, जिला इंदौर
वापस इंदौर करवाएंगे
अटैचमेंट या डेपुटेशन की आड़ में कोई भी सालों तक अपने मूल स्थान के बजाय दूसरी जगह नहीं रहना चाहिए। फिजियोथेरेपिस्ट नहीं होने के कारण इंदौर के सैकड़ों बच्चे दर्द सहते रहें, यह उचित नहीं है। तत्काल ही अटैचमेंट समाप्त करवाकर वापस इंदौर करवाते हैं।
तुलसी सिलावट, मंत्री, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

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