सीबीआई (CBI) के निदेशक आलोक कुमार वर्मा (Alok Verma) को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने के केंद्र के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) फैसला सुनाएगा। निदेशक आलोक कुमार वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने पिछले साल 23 अक्तूबर को दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर अवकाश पर भेजने का निर्णय किया था। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके साथ ही संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को जांच एजेंसी के निदेशक का अस्थाई कार्यभार सौंप दिया था। वर्मा का सीबीआई निदेशक के रूप में दो साल का कार्यकाल 31 जनवरी को पूरा हो रहा है। इस केस से जुड़ी 10 बातें
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1- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने पिछले साल छह दिसंबर को आलोक वर्मा की याचिका पर वर्मा, केंद्र, केंद्रीय सतर्कता आयोग और अन्य की दलीलों पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जाएगा।
2- पीठ ने गैर सरकारी संगठन कामन काज की याचिका पर भी सुनवाई की थी। कोर्ट ने जांच एजेंसी की गरिमा बनाए रखने के उद्देश्य से सीवीसी को कैबिनेट सचिव से मिले पत्र में लगाए गए आरोपों की जांच दो सप्ताह में करके अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपने का निर्देश दिया था। यही नहीं, कोर्ट ने सीवीसी जांच की निगरानी की जिम्मेदारी शीर्ष अदालत के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एके पटनायक को सौंपी थी।
3- वर्मा ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के एक और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के दो सहित 23 अक्टूबर 2018 के कुल तीन आदेशों को निरस्त करने की मांग की है। उनका आरोप है कि ये आदेश क्षेत्राधिकार के बिना तथा संविधान के अनुच्छेदों 14, 19 और 21 का उल्लंघन करके जारी किये गये।
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4- पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज की याचिका पर भी सुनवाई की थी। इस संगठन ने न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से राकेश अस्थाना सहित जांच ब्यूरो के तमाम अधिकारियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने का अनुरोध किया था।
5- केन्द्र ने शीर्ष अदालत के सामने वर्मा को उनकी जिम्मेदारियों से हटाकर अवकाश पर भेजने के अपने फैसले को सही ठहराया था और कहा था कि उनके और अस्थाना के बीच टकराव की स्थिति है जिस वजह से देश की शीर्ष जांच एजेंसी ”जनता की नजरों में हंसी का पात्र बन रही है।
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6-अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था केन्द्र के पास ”हस्तक्षेप करने तथा दोनों अधिकारियों से शक्तियां लेकर उन्हें छुट्टी पर भेजने का ”अधिकार है।
7- आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन ने कहा कि मैं सीबीआई डायरेक्टर केवल विजिटिंग कार्ड पर हूं। मैं केवल पोस्ट को ही नहीं बल्कि ऑफिस को संभालना चाहता हूं। ट्रांसफर का मतलब सेवा न्यायशास्र में हस्तांतरण नहीं है, इसे अपने सामान्य अर्थ में देखा जाना चाहिए। यदि सीवीसी और सरकारी आदेश देखे जाते हैं, तो सभी कार्यों (सीबीआई निदेशक के) को हटा दिया गया है।
8-केन्द्र सरकार ने कोर्ट से कहा- “आलोक वर्मा और राकेश अस्थान के बीच लड़ाई काफी बढ़ गई थी और यह सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन गया था। सरकार हैरान होकर देख रही थी कि आखिर दो शीर्ष अधिकारी कर क्या रहे हैं। वे बिल्ली की तरह झगड़ रहे थे।
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9-सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बताया कि नियुक्ति के बाद चयन समिति का कोई रोल नहीं रहता है, क्योंकि वह तीन लोगों के नाम सरकार को देती है और सरकार उनमें से एक को नियुक्त करती है। उन्होंने कहा, नियुक्ति की अंतिम अथॉरिटी सरकार ही है।
10-केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि उनकी नियुक्ति दो साल के लिए की गयी थी और इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। यहां तक कि उनका तबादला भी नहीं किया जा सकता। आलोक वर्मा की याचिका पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हम आरोप-प्रत्यारोपों में नहीं जा रहे। हम इस मुद्दे की जांच विशुद्ध रूप से कानून के विषय के रूप में कर रहे हैं।